Book Title: Bandhashataka Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 313
________________ बन्धशतकप्रकरणम् इय हेऊओ सुहुमगगहणं पुंवेयसंजलचउक्कं । इय पणगस्स नियट्टी उक्सजोगो उ उक्कोसं ॥८९२॥ बंधं विहेइ तत्थ य इय पंचप्पयडिबंधगो बंधं । पुंवेयस्सुक्कोसं बंधं पकरेइ तत्थ वि य ॥८९३॥ हासङ्भयदुगुंछा भागो अहिगो उ लब्भई तत्थ । ईतग्गहणं संजलणाणं सायाइकहणम्मि ॥८९४॥ जह तीसइपगईणं कहणावसरम्मि भावणा पकया । तह इहई पि हु नेया तह सम्मो पगडिनवगस्स ॥८९५॥ निद्ददुगं हासाईछक्कं तित्थयरमेव नवगंति । उक्कोसपएसं संविहेइ तहिं निंदनिद्ददुयगस्स ॥८९६॥ जह तीसइ पगडीणं मज्झे सायाइकहणवसरम्मि । भणिओ भागो तह इह सव्वो वि हु होइ भणियव्वो ॥८९७॥ हासाइछक्गस्स उ जे जे सम्माइनियट्टियंताणं । मज्झम्मि तब्बंधं करंति ते ते उ उक्कोसे ॥८९८॥ जोगम्मि वट्टमाणा उक्कसबंधं करंति तत्थ ठिया । मिच्छविभागो लब्भइ ई सम्मद्दिट्ठिणो गहणं ॥८९९॥ तित्थयरस्स उ अविरयपभिई जीवो अपुव्वकरणंतो । सम्मो मूलप्पगडीसगविहबंधंमि उज्जुत्तो ॥९००॥ भूयक्काराइचिंतावसरे नामस्स दरिसियसरूवं । देवगईपाओग्गं तित्थयरसुनामसहियाए ॥९०१॥ एगुणतीसं उत्तरपगईबंधम्मि वट्टमाणो उ । उक्कडजोगो उक्कसपएसबंधं किर विहेई ॥९०२॥ मिच्छट्ठिी एया न बंधइ तेण सम्मजियग्गहणं । तित्थयरनामसहिया तेवीसइपभिइया पुव्वं ॥९०३॥ २९७

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