Book Title: Bandhashataka Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna
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गा.-१००
बन्धशतकप्रकरणम्
ठिइअणुभागा हुंती उवसंताई कसायविरहम्मि । ठिइअणुभागा न हुंति इय अन्नयवइयरेएहिं ॥१०३०॥ ठिइए अणुभागाणं हुंति कसाया पहाणकारणयं । एवं जोगकसाया बंधस्स चउव्विहस्सावि ॥१०३१॥ हुंदुत्तमकारणयं तेर्सि सहकारिकारणत्तेणं । वावरमाणाण इहं मिच्छाविरईण अन्नेसि ॥१०३२॥ नाणावरणाईणं तह दव्वखेत्तकालमाईणं । सहकारिकारणत्तं अनिवारियमेव इह होइ ॥१०३३॥ पुव्वदलं वक्खायं जोगा एमाइयाइ गाहाए । तव्वक्खाणे पुव्वं अणेगठाणेसु तह एत्थ ॥१०३४॥ तह उत्तरत्थ अप्पयबहुत्तचिंताइसोवओगित्ता । जोगट्ठामा तह ठिइबंधज्झवसायठाणाओ ॥१०३५॥ अणुभागबंधज्झवसायठाणा लेसओ उवक्खाया । कम्मपयडिचुन्नीओ वित्थरस्थीहिं तु नेया ॥१०३६॥ एवं च विसेसेणं बंधचउक्कस्स हेयवो भणिया । अह बद्धकम्मउदयो जइ होई तह उ संखेवा ॥१०३७॥ पभणई कालभवाईगाहाअद्धेण तत्थ मूलिल्ला । पयडीओ धुवउदया उत्तरपयडी उ पुण एया ॥१०३८॥ आवरणाणं दसगं दसणचउमिच्छतेयकम्मइगं । वन्नाइ चउगगुरुलहुथिरदुगसुभजुयलनिम्माणं ॥१०३९॥ इय सत्तवीसपयडी धुवउदया एव सव्वजंतूणं । उदयववछेयआरा कालभवाईण निरवेक्खो ॥१०४०॥ इय पयडीणं उदओ निरंतर होइ सेसयाणं तु । निद्दापणगाईणं तु कालभवखेत्तसावेक्खो ॥१०४१॥
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