Book Title: Bandhashataka Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna
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बन्धशतक प्रकरणम्
भा० सेढिअसंखेज्जपभिइगाहचक्कं ति तासि भावणिया । समयपसिद्धिगआगास-सेढि अस्संखभागम्मि ॥ १०५८ ।। जत्तियमेत्तपसा तत्तियमेत्ताणि जोगठाणाणि । ताणि य सव्वाणि उत्तरपयअवेक्खाए थोवाणि ॥ १०५९॥ तेहि असंखगुणाओ पयडीओ हुंति जेण एक्केके । जोगट्टाणे नाणाजीवेहिं वट्टमाणेहिं ॥१०६०॥ कालभेएणं एगेण वावि जीवेण कम्मपयडीओ । सव्वाओ बज्झते इय पयडीणं असंखत्तं ॥ १०६१ ॥ पयडीण असंखगुणा ठिई विसेसाउ तस्सरूवमिणं । ठिइबंधं तो कोई अंतमुहुत्तं पबंधेड़ ॥१०६२ ॥ तंपि य समयब्भहियं कोई दुसमयहियं पबंधेड़ । केवि पुणो बहु इच्चाइ लक्खणा ठिड़विसेसाउ ॥ १०६३॥ भन्नंति तर्हि पयडी एक्केक्का वि हु असंखमाणेहिं । ठिइविसेसेहिं बज्झइ जेणं एगा वि किर पयडी ॥ १०६४॥ कोइ जिओ अन्नेणेव ठिइविसेसेण बंधई अन्नो । अन्नेण ठिइवेसेसेण एवमाईहिं भेएहिं ॥ १०६५ ॥ एगाइएवि पयडीए ठिइविसेसा उ हुंतसंखेज्जा । पयडि सया तो एवं च ठिइविसेसा असंखेज्जा ॥१०६६॥ तेहिं तो ठिड्रबंधज्झवसाणाऊ असंखगुणियाओ । तेसि सरूवं तु इमं कसायजणिया उ जीवस्स ॥ १०६७॥ जे परिणामविसेसा तेसिं तो ठाणाणि जाणि किर हुंति । ताणि य ठिड्बंधज्झवसाणाणि भांति समयन्नू ॥ १०६८ ॥ ताणि य कारणभूया ठिईपबंधस्स कज्जरूवस्स । ताणि असंखगुणाई ठिइविसेसाण भणियाणि ॥१०६९॥
गा. १०३
१०४
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