Book Title: Bandhashataka Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 337
________________ गा.-१०० बन्धशतकप्रकरणम् अनुभागफड्डगाणं सिद्धाणमणंतभागवत्तीणं । अभिवियणंतगुणाणं अणुभागट्ठाणयं पढमं ॥१०१८॥ होई अहिगरसेसुं तेणेव कम्मेण कम्मखंधेसु । बीयमणुभागट्ठाणं एवं तइयं पि विन्नेयं ॥१०१९॥ एवं किर सव्वेसुं वि कसायरसेसु कम्मखंधेसु । अस्संखयमाणाई भवंति अणुभागठाणाई ॥१०२०॥ नाणावरणाइसुपि कम्मक्खंधेसु इय पमाणाइं । हुंति परमिह कसाया कारणभावेण वक्खाया ॥१०२१॥ तहिं जहन्नअणुभागठाणा जहन्नेण एगसमयं तु । चउसमगा उक्कोसेण हुँति तह ठाणगा जेट्ठा ॥१०२२।। जहन्नेणं इगसमयं उक्कोसेणं तु दुन्नि समयाउ । मज्झिमठाणे उ जहन्नओ उ समयं तहुक्कोसं ॥१०२३॥ कइया वितिन्नि चउरो समया जावट्ट हुंति उक्कोसं । एय परं सव्वत्थवि अन्नं परिवत्तए ठाणं ॥१०२४॥ एवं किर तज्जणिओ जहन्नाईभेयभिन्नओ सव्वो । एवइयकालठिइओ अज्झवसाओ य किर होइ ॥१०२५॥ तेण जहन्नाइभेयज्झवसायविचित्तयाए अणुभागो । बझंतकम्मत्तणओ जणयइ जहन्नाइभेएहिं ॥१०२६॥ नाणाभेओ तो किर कसायअणुभागज्झवसायाण । वइचित्तेणं निव्वित्तियाण कम्माण अणुभागो ॥१०२७॥ होई कसायपच्चय सव्वो ई वन्नियं तहिं बंधे । कारणजुयलं भणियं मिच्छत्तं अविरई चेव ॥१०२८॥ पुट्वि सामन्नेणं भणियं जइवि हु तहा वि किर तेसिं । विरहे वि पमत्ताइसुहुमंतेसुं किर कसाएसु ॥१०२९॥ AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA ३२१

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