Book Title: Bandhashataka Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna
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A
गा.-१००
बन्धशतकप्रकरणम्
जोगसरूवं च इमं भणंति सुहुमस्स किर निगोयस्स । अह थोवविरियलद्धीजुयस्स जे किर जियपएसा ॥९९४॥ केइ वि य अप्पविरिया केइ वि बहुबहुतमाइविरियजुया । तहि सव्वअप्पवीरियजुत्तस्स वि किर पएसस्स ॥९९५॥ जं होई किर विरियं तं पन्नाछेयणेण छिज्जंतं । अस्संखलोग आगासदेससंखा उ भागाओ ॥९९६॥ देई तस्सेवोक्किट्ठविरियजुत्तंमि किर पएसम्मि । जं विरियं तं तेसिं अस्संखगुणं जओ उत्तं ॥९९७॥ पन्नाए छिज्जंता असंखलोगाण जत्तियपएसा । तत्तियविरियविभागा जीवपएसम्मि एक्केके ॥९९८॥ सव्वजहन्नगविरिए जीवपएसम्मि एत्तिया संखा । तत्तो असंखगुणिया बहुविरिए जियपएसम्मि ॥९९९॥ वीरियवग्गणफड्डगअसंखगुणणेण जोगठाणेगं । ते अस्संखा तेसिं भावत्थो वित्तिओ नेओ ॥१०००॥ पज्जत्ता सव्वेवि हु जहन्नजोगम्मि निययजोगम्मि । जहन्नेणेगं समयं हुतुक्कोसं तु चउसमया ॥१००१॥ जहन्नेणं इगसमयं उक्कोसेणं तु दुन्नि उक्कोसे । मज्झिमजोगम्मि जहन्नओ उ समयं तहुक्कोसं ॥१००२॥ कइया बितिचउपंचछसगट्ठसमयाउ जाव वट्टते । अपज्जतया उ सव्वे एगम्मि जोगठाणम्मि ॥१००३॥ इगसमयमेव अच्छंति तो असंखेज्जगुणपवुड्डीए । पइसमयं उक्कोसगजोगट्ठाणेसु वटुंति ॥१००४॥ ठिड्अणुभागं वयणे ठिइअणुभागाण किर कसाया उ । बंधस्स हेउणो किर हवंति तहिं ठिठाणेण ॥१००५॥
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