Book Title: Bandhashataka Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 296
________________ गा.-९२ बन्धशतकप्रकरणम् बंधंतस्स उ साई तहोवसंताउ परिवडतस्स । तत्थेवोकिट्ठजोगओ य अणुकिट्ठजोगम्मि ॥७९०॥ गच्छंतस्स उकिट्ठो न होइ तो तत्थ अधुवओ बंधो । होइ जहन्नओ पुण छण्हं कम्माण एएसि ॥७९१॥ होई पएसबंधो सुहुमनिगोयस्स अप्पजत्तस्स । सव्वअइमंदवीरियलद्धीजुत्तस्स सत्तस्स ॥७९२॥ सत्तविहं बंधगस्स उ अजहन्नजोगित्तणे पढमगम्मि । भवसमयम्मि जहन्नो पएसबंधो फुडं होई ॥७९३॥ तस्सेव निगोयस्स उ भवदुतितुरियाइएसु समएसु । अजहन्नो सो होई असंखगुणविरियजुत्तस्स ॥७९४॥ तो पुण संखेज्जेणं असंखकालेण वा वि पुव्वुत्तं । पाविज्ज जहन्नजोगं स एव बंधं जहन्नं तु ॥७९५॥ पकरइ पएसबंधं पुण अजहन्नं इमाए रीईए । संसारम्मि अणंते परिब्भमंताण जीवाणं ॥७९६॥ अजहन्नजहन्ने पएसबंधे य दोवि किर हुंति । साईय अधुवबंधो अह पभणइ मोहआऊणं ॥७९७॥ तत्थ य किर मोहआउयसव्वहिं चेव इय पयस्सत्थो । सव्वत्थ य उक्किट्ठे अणुकिट्ठजहन्नअजहन्ने ॥७९८॥ सेसतिगे च इहं पि य दुविगप्पो साइअधुवओ होइ । तहि मिच्छो इयरो वा अनियट्टी बायरो जाव ॥७९९॥ सत्तविहबंधकाले उक्कोसजोगम्मि वट्टमाणो उ । मोहणियस्सुक्कोसं पएसबंधं किर विहेइ ॥८००॥ पुणरवि अणुकिट्ठ पि य जोगं पावित्तु कुणइ अणुकिटुं । बंधं पुण उक्किट्ठ अणुकिट्ठ पुण वि बंधेड़ ॥८०१॥ AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA २८०

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