Book Title: Bandhashataka Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna
View full book text
________________
गा.-९३
बन्धशतकप्रकरणम्
एवं ठिए अविरयपभिइणो उक्कोसजोगओ जइया । तब्बंधछेयओ वा परिवडियअणुक्कसं बंधं ॥८१८॥ पकरंति तया बंधो सो साई सम्मसहियमुक्कोसं । जोगं अपत्तपुव्वाणं होइ अणाइ इह बंधो ॥८१९॥ पुव्वंपिव धुवअधुवा बंधा नेया तहा कसायाण । अपच्चक्खाणाण चउक्कगस्स उक्कोसजोगजुओ ॥८२०॥ अविरयसम्मो सत्तविहबंधगो उक्कसं कुणइ बंधं । एसो नो मिच्छत्तं पढमकसाया य बंधेइ ॥८२१॥ ता तब्भागो अहिओ लब्भइ एत्थं अओ इमो गहिओ । जेणं मिच्छो मिच्छं बंधेइ पढमिगकसाया ॥८२२॥ सासो पढमकसाए बंधइ तेणं इमे उ नो गहिया । मीसदिट्ठिस्स ओ भणियं अग्गहणे कारणं पुव्वं ॥८२३॥ देसविरयाइया पुण वीयकसायाओ नेव बंधंति । इय सेसजियच्चाएण सम्मदिट्ठी इहं गहिओ ॥८२४॥ तइयकसायचउक्कस्स देसविरओ उ जोगउक्कोसो । सत्तविहबंधगो संविहेइ उक्कोसगं बंधं ॥८२५॥ दुइयकसायाण अबंधगो उ एसो अओ उ तब्भागो । एत्थं अहिओ लब्भइ देसविरयस्स उ तो गहणं ।।८२६॥ अविरयसम्माईया अपुव्वकरणंतया उ बंधंतो । वि दुगुच्छभए उक्कोसजोगया उक्कसं बंधं ॥८२७॥ बंधंति मिच्छभागो लब्भइई सम्मदिट्ठिणो गहणं । नियजाइत्ता होई कसायभागो कसायाणं ॥८२८॥ मिच्छट्टिी मिच्छस्स बंधगो नो लहेइ तब्भागं । इय तस्सागहणं मिस्स-सासणे पुण लहंतेवं ॥८२९॥
AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA
२८६

Page Navigation
1 ... 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376