Book Title: Bandhashataka Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Prashamrativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna
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गा.-९३
बन्धशतकप्रकरणम्
परघायं वेयणियाउगोय हासाइदुजुयलतिवेयं । विग्यावरण विणा एया तेवत्तरि अधुवबंधा ॥८५४॥ इय नवई पयडीओ उक्किट्ठणुकिट्ठजहन्नअजहन्नो । चउविहपएसबंधो पत्तेयं होइ दुविगप्पो ॥८५५॥ साइअधुवप्पभेया तत्थ य पयडीण अधुवबंधीणं । अद्धवबंधित्ताओ उक्किट्ठाई चउविहो वि ॥८५६॥ बंधो दु(चउ)विगप्पोवि ई अविसद्दाउ होइ दुविगप्पो । साई तह अधुवो वि तह थीणतिगस्स मिच्छस्स ॥८५७॥ अणुबंधीचउगस्स य मिच्छो सत्तविहबंधगो जीवो । उक्कसजोगो एगं दो वा समया कुणइ बंधं ॥८५८॥ सम्मो पुण एयाई नो बंधइ तेण मिच्छगहणंति । सासायणो वि एयाणि मिच्छरहियाणि बंधेइ ॥८५९॥ नवरं उक्कसजोगो न लब्भए वक्खमाणनीईए । इय तस्स वि अग्गहणं इगदुसमयनियमओ ओ पुणो ॥८६०॥ उक्कसजोगिस्सेव उक्कोसजोगस्स एत्तिओ कालो । उक्कस्सजोगाओ परिवडित्तु सो चेव अणुक्कोसं ॥८६१॥ बंधं करेइ पुण सो उक्विटुं पुणणुकिट्ठयं बंधं । एवं साई अधुवा दुवे वि बंधा हवंतेवं ॥८६२॥ एयासि पि य पयडीण अप्पजियविरयलद्धिसंजुत्तो । भवपढमे समयम्मी व तो सत्तविहबंधी ॥८६३॥ जहन्नपएसबंधं सुहुमनिगोओ करेड़ सो वि जिओ । भवबीयाइसु समएसु करेड़ बंधं जहन्नियरं ॥८६४॥ कालंतरेण पुणरवि सो वि जहन्नं पुणो वि अजहन्नं । साईअधुवपभेया पत्तेयं हुंति दुविगप्पा ॥८६५॥
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