Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 18
________________ धड़ा जैन-ग्रंथ-संग्रह। कलकी वात रही कल ऊपर, भूल अभी को जावे ॥ मत० पीनेवाला-भंग नहीं यह शिव की वूटी, अजर अमरहै करतो। जन्म जन्म के पाप नशा कर सब रोगों को हरती॥चलो. विरोधी-भंग नहीं यह विप की पत्ती, करे मनुष को ख्यार। जीते जी अन्धा कर देती, फिर नर्को दे डाल | मनः पीनेवाला-कुण्डो में खुद वसे कन्हैया, औ सोटे में श्याम । विजया में भगवान वसे हैं, रगड़ रगड़ में राम ॥ चलो. विरोधो-अरे भंग के पीनेवाले भङ्ग बुद्धि हरलेत । होशयार औ चतुर मई को, खरा गधा कर देत ॥ मत. पीनेवाला-झूठी बातें फिरे बनाता, ले पी थोड़ी भंग। एक पहर के बाद देखना कैला छावै रंग ॥ चलो. विरोधी-लानत इस पर, लानत तुझ पर, चल चल होजा दूर । भंग पिये भंगड़ कहलावे अरे पातकी क्रूर ॥ मत० पीनेवाला-भंग के अदभुत मजे को तूने कुछ जाना नहीं। रंग को इसके जरा भी मूढ़ पहचाना नहीं ॥ आंख में सुरखी का डोरा मन में मौजों की लहर। शांति आनँद विन इसी के कोइ पालकता नहीं ॥ (चलत) साधू संत सङ्ग सव पीते क्या कंगाल अमोर ! ईश्वर से लोलीन करावै ये इसकी तासीर ॥ चलो. 'विरोधी-है नहीं यह भङ्ग कातिल अक्ल को तलवार है। वेहोश करती है यही जानों महा मुरदार है। खौफ जिनको नर्क का है वह इसे ते नहीं। चात सच मानो हमारो नर्क का यह द्वार है। . (घलत) यह सव भूठी बातें भाई भंग नरक में डाले। आखें खोल जगत में देखो लाखों काम विगाड़े मत. पीनेवाला-सुनकर यह उपदेश तुम्हारा हमें हुआ आनंद ।

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