Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 78
________________ મ जैन ग्रन्थ-संग्रहा जय सुमइ सुमइ सम्मयपयास । जय परमप्पह पउम:निवास | जय जयहि सुपास सुपासगत | जय चंद्रह दाहवत ॥ जय पुप्फयंत दंतंतरंग | जय सीयल सीयलवयभंग | जय सेय सेर्याकर णोहसुन । जयं वासुपुन पुजाणपुत्र ॥ ४ ॥ जय विमल विमलगुण सेढिठाण । जय जयहि अणताताण जय धम्म धम्मतित्थयर संत । जय सांति सांति विहियायवन्त ॥ ५ ॥ जय कुंथु कुंथुपहुसंगिसदय । जय भर भर माहर विहियसमय | जय मल्लि मल्लिओदामगंध। जय मुणिसुन्वय. सुव्त्रयणिबंध ॥ ६ ॥ जय णमि णमियामरणियरसामि । जय णेमि धम्मरहचक्कणेमि । जय पास पास छिंदण किवाण । जय. वड्ढमाण जसवड्ढमाण || e ॥ चत्ता । 1 इह जाणिय णामहि, दुरियविरामहिं परहिंवि णमिय सुराचलिहिं महणहिं अणाइहिं, समियकुंवाइहिं, समियकुंवाइर्हि, पणविमि अरहंतावलिहिं ॥ ॐ ह्रीं वृषभादिमहावीरान्तेभ्योऽयं महाघं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥

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