Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 86
________________ १७२ जैन-ग्रन्थ-संग्रह। चौपाई। .. . कंचनझारी निरमल नीर । पूजौं जिनवर गुनगंभीर। , परमगुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो। दरशविशुद्धि भावना भाय । “सोलह तीर्थंकरपददाय परमगुरु ही, जय जय नाथ परमगुरु हो ॥१॥ ॐ हीं दर्शनविशुद्यादिषोडशकारणेभ्यो जन्ममृत्युविनाशाय जलं नि०॥ चंदन घसौं कपूर मिलाय, पूजौं श्रीजिनवरके पाय । परम हो, जय जय नाथ परमगुरु हो ॥ दरश० ॥२॥ ____ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धयादिषोडशकारणेभ्यः संसारतापविनाशनाय चन्दनं० ॥ तंदुल धवल सुगंध अनूप । पूजौं जिनवर तिहुँजगभूप । परमगुरु हो, जय जय नोथ परमगुरु हो ॥ दरशवि०॥३॥ ____ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध यादिषोडशकारणेभ्योऽक्षयपदप्राप्ताये अक्षतान् नि०॥ . फूल सुगंध मधुपगुंजार । पूजौं जिनवर जगभाधार । परमगुरु हो जय जय नाथ परमगुरु हो ॥ दरश० ॥ ४॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्यादिषोडशकारणेभ्यः कामबाणविध्वंसनीय,पुष्पं ॥ . . ... सदनेवज बहुविध पकवान ! पूजौं श्रीजिनवर गुणखान । परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो ॥ दरशवि० ॥५॥ ॐ ह्रीं वर्शनविशुद्ध यादिषोडशकारणेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य . .. .... दीपकजोति तिमर छयकार। पूंजं श्रीजिन केवलधार । परमगुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो । दरश विशुद्ध भावना माय । सोलह तीर्थंकरपद् पाय! . . .

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