Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 113
________________ जैन-ग्रन्थ-संग्रह २६५ है जिनराय, तुम ढिग भेट धरौ ॥ श्री वीर० ॥ जयवर्द्धमान०॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं नि०॥ ८॥ जलफल वसु सजि हिमथार, तनमन माद धरों । गुण गाऊ भवदधितार, पूजत पापहरौं ॥ श्रीवीर० ॥ जयवद्धमान ॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अनयंपदप्राप्तये अयं नि०॥॥ पंचकल्यानक-राग टप्पा । मोहि राखौ हो सरना, श्रीवर्द्धमान जिनरायजी, मोहि राखौ हो-सरना ॥ टेक ॥ गरभ साढसित छट्ट;लियौ तिथि, त्रिशला उर. अघहरना । सुर सुरपति तित सेव करत नित, मैं पूजू भवतरना ॥ मोहि राखौ० ॥१॥ ॐ हीं आषाढशुक्लषष्ठिदिने गर्भमङ्गलमण्डिताय श्रीमहावीर जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा० ॥१॥ . जन्म चैत सित तेरस के दिन, कुंडलपुर कनवरना । सुरगिर सुरगुरु पूज रचाया, मैं पूजु भवहरना ॥ मोहिराखौ० ॐ ही चैत्रशुक्लत्रयोदशीदिने जन्ममङ्गलप्राप्ताय श्रीमहा. वीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामोति स्वाहा ॥२॥ मगशिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरणा। नृप कुमारघर पारन कीना, मैं पूजं. तुम.चरना। मोहि राखौ हो०॥३॥ ॐ ह्रीं मार्गीकृष्णंदशभ्यां तपोमङ्गलमंडिताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वयामीति स्वाहा ॥३॥ शुकलदशै वैशाखदिवस अरि, धात चतुक छ्य करना। केवल लहि भवि भवसर तारे, जजू चरन सुख भरना ॥ मोहि राखौ० ॥४॥..... ___ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लदशम्यां ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥

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