Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir
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जैन-ग्रन्थ-संग्रह।
.. : :. 'अथाष्टक छंद अष्टपदी।":.: ' ... .... क्षीरोदधिसम शुचिं नीर, कन्चन ग भरौं। प्रभु वेग हरौ भवपीर, या धार करौं । श्रीवीर महा अतिवीर सनमतिनायक हों। जय वर्द्धमान गुणधीर, सनमतिदायक हो। .
। ॐ ह्रीं-श्रीमहावीरजिनेन्द्रायः जन्मजरामृत्युविनाशनाम जलंनिर्वपाभीति स्वाहा ॥ १ ॥.:... ... .. . . ..... मलयागिरचंदन सार, केसरसंग घसौं । प्रभुभव आताप निवार, पूजत हिय हुलसौ ॥ श्रीवीर ॥ जय वर्द्धमान०॥". ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि० ॥ .. " तंदुललित शशिसम शुद्ध, लीने थारंभरी । तंसु पुज धरौ अविरुद्ध, पाऊं शिवनगरी ॥ श्रीवीर जय वर्धमान ॥२॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षातान् नि०॥३॥
..सुरतरु के सुमनसमेत, सुमंत सुमन प्यारे । सो मनमथ भंजन हेत, पूजू पद थारे ॥ श्रीवीर०॥ जय वर्तमान० ॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं नि०॥।
__ रसरज्जतं. सज्जत सद्य, मज्जत धारभरी । पदजज्जत . रज्जत अद्य, भज्जत भूख अरी ॥ श्रीवीर०॥ जयवर्द्धमान ॥ . ॐ ह्रीश्रीमहावीरजिनेन्द्रायक्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि०॥५॥
तमखंडित मंडित नेह, दीपक जोवत हूँ। तुम पदतर.हे सुखगेह, ममतम खोवत हूँ॥ श्रीवीर जय वर्द्धमान०॥ . ॐ ह्री. श्रीमहावीर जिनेन्द्रायः माहान्धकारविनाशनाय. दीपं नि०॥६॥ . . . . . . . . . . . . . . . . . - हरिचन्दन अगर कपूर, चूरि सुगन्धं करें। तुम पदतर खेवत भूरि, आठौं कर्म जरे ॥ श्री वीर ॥ जयवर्द्धमानः ॥ ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं नि०॥७॥ "रितुफल कलवर्जित लाय, कंचनथार भरौं। शिव फल हित

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