Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ जैन-ग्रन्थ-संग्रह। ___ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिवेभ्यो नैवेद्यं निक तमहर उज्जल जोति जगाय । दीपसौं पूजौं श्रीजिनराय । महासुख होय, देखे नाथ.परम सुखं होय ॥ पांचों ॥६॥ ___ॐ ह्री. पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनविम्वेभ्यो दीपं नि०॥ खेउं अगर परिमल अधिकाय । धूपसौं पूजौं श्रीजिनराय । महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥ पांचों०॥७॥ ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनविम्वेभ्यो धूपं नि०॥ । . सुरस सुवर्ण सुगंध सुभाय । फलसौं पूजों श्रीजिनरायः। महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥ पांचो० ॥ ८॥ . ॐ ह्रीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यो फलं नि आठ दरवमय अरघ वनाय । 'द्यानत' पूजौं श्रीजिनराय । महासुख होय,देखे नाथ परम सुख होय ॥ पाचों० ।।६।। ___ॐ हीं पञ्चमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनविम्वेभ्यो अध्यं नि०॥ . अथ जयमाला। सोरठा । . . प्रथम सुदर्शन स्वाम, विजय अचल मन्दर कहा। विद्युन्माली नाम, पंचमेरु जग मैं प्रगट ॥१॥ वेसरी छन्द । ...: प्रथम सुदर्शन मेक विराजै । भद्रशाल वन भूपर छाजै॥. चैत्यालय चारों सुखकारी । मनवचतन वंदना हमारी ॥२॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116