Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ १६८ जैन-ग्रन्थ-संग्रह। - ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥ शुभ धूप परम . अनूप पावन, भाव पावन आचरौं । सब करमजलाय दीजे, बोर कर विनती करौंसम्मेगा ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो धूपं निर्यपा. मोति स्वाहा ॥७॥ वहु फल मंगाय चढ़ाय उत्तम, चारगतिसों निरवरौं। निहचै मुकतफल देहु मोकौं,जोर कर बिनती करौं।सम्मेष्टा ___ 'ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यः फलं निर्वपाभीति स्वाहा ॥ ८॥ जल गंध अक्षत फूल चरु फल, दीप धूपायन धरौं। 'द्यानत'करो निरभय जगततै,जोर कर विनती करौं।सम्मे॥ . ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥ . ' अथ जयसाला। .. सोरठा। श्रीचौवीसजिनेश, गिरिकैलासादिक नमों। तीरथमहाप्रदेश, महापुरुपनिरवाणते ॥१॥ चौपाई १६ मात्रा। ... नमों रिषभ कैलास पहारं । नेमिनाथगिरिनार निहारं ॥ वासुपूज्य चंपापुर बंदौं। सनमति पावापुर अभिनंदौं ॥२॥ वंदौं अजित अजितपददाता । वंदौं संभवभवदुखधाता ।। वंदौं अभिनंदन गणनायक । वंदौं सुमति सुमतिके दायक ॥३॥ वंदौं पदम मुकतिपदमाधर । वंदी सुपार्स आशपासा हर ॥ वंदौं चंदप्रभ प्रभुचंदा. बंदी सुविधिसुविधिनिधिकंदा ॥४॥ वंदौं शीतल अधतपशीतल । वंदों श्रियांसधियांसमहीतल ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116