Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 100
________________ २१२ जैन-ग्रन्थ-संग्रह। दशम प्रश्नव्याकरण विचारं । लाख तिरानवें सोलहजारं ॥५॥ ग्यारम सूत्रविषाक सुभाखं । एक कोड़ चौरासी लाखें । चार कोड़ि अरु पन्द्रह लाखं । दो हजार सब पद गुरुशार्स ॥क्षा द्वादश दृष्टिवाद पनभेदं । इकसा आठ कोड़ि पन वेदं ॥ , ' अड़सट लाख सहस छप्पन हैं। सहित पंचपद मिथ्याहनहैं l इक सौ बारह कोड़ि वखाना । लाख तिरासी ऊपर जानो। ठावन सहस पंच अधिकाने । द्वादश अंग सर्व पद माने ॥८॥ कोड़ि इकावन आयहि लाखं ।सहस चुरासी छहसौ भाख ॥ साढ़े इकीस शिलोक बताये। एक एक पद के ये गाये ॥१॥ घत्ता जा बानो के ज्ञान में, सूझ लोक अलोक। 'द्यानत 'जग जयवंत हो, सदा देत हो धेोक ॥ श्रीजिनमुखोद्वतसरस्वत्यै देव्यै पूर्णाऱ्या निर्वपामि । इति सरस्वतीपूजा गुरुपूजा। दोहा चहुँ गति दुखसागरविष, तारनतरनजिहाज । रतनत्रयनिधि नगर तन, धन्य महा मुनिराज ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीआचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुसमूह ! अत्रा. वरतावतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीआचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुसमूह ! अत्र तिष्ट तिष्ट । ठः ठः। ॐ ह्रीं श्रीआचार्योपाध्यायसर्वसाधुगुरुसमूह ! अत्र

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