Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir
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रूट
जैन-ग्रन्थ-संग्रह।
चौपाई (१६ मात्रा) । एक ज्ञान केवल जिन स्वामी । दो आगम अध्यातम नामी । तीन काल विधि परगट जानी। चार अनन्तचतुष्टय ज्ञानी ॥२॥ पंच परावर्तन परकासी। छहों दरवगुनपरजयभासी ॥ सातभंगवानी परकाशक | आठों कर्म महारिपुनाशक ॥ ३॥ नव तत्त्वनकै भाखनहार । दश लध्छनौ भविजन तारे। ग्यारह प्रतिमा के उपदेशी । बारह सभा सुखी अकलेशी ॥४॥ तेरह विधि चारित के दाता । चौदह मारगना के ज्ञाता ॥ गंद्रह भेद प्रमादनिवारी । सोलह भावन फल अविकारी ॥५॥ तारे सत्रह अंक भरत, भुव । ठार थान दान दाता तुच ॥ भाव उनीस जु कहे प्रथम गुन । वीस अंकगणधरजीकी धुन॥६॥ इकइस सर्व घातविधि जानै । वाइस बध नवम गुन थाने ॥ तेइस निधि अरु रतन नरेश्वर । सोपू चौवीस जिनेश्वर ॥॥ नाश पचीस कषाय करी हैं। देशधाति छब्बीस हरी हैं। तत्त्व दरब सत्ताइस देखे । मति विज्ञान अठाइस पेखे ॥८॥ उनतिस अंक मनुप सब जाने। तीस कुलाचल सर्व बखाने । इंक्रतिस पटल सुधर्म निहारे । बत्तिस दोष समाइक टारे ॥६॥ तेतिस सागर सुखकर आये । चोतिस भेद अलब्धि बताये। पैंतिस अच्छर जप सुखदाई। छत्तिस कारन-रीति मिटाई॥१०॥ सैंतिस मगं कहि ग्यारह गुनमें । अठतिस पद लहि नरक अपुनमें उनतालीस उदीरन तेरम । चालिस भवन इंद्र पूऊँ नम ॥११॥ इकतालीस भेद आराधन ।'उदै बियालिस तीर्थंकर भन ॥ तेतालीस बंध ज्ञाता नहिं । द्वार चवालिस नर चौथेमहि॥१२॥ पैतालीस पल्य के अच्छर । छियालीस बिन दोष मुनीश्वर। नरक उदै न छियालीस मुनिधुन । प्रकृति छियालीस नाश
. .. दशम गुन ॥ १३ ॥

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