Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ १५० जैन ग्रन्थ-संग्रह | क्षीरोदधिसम नीरसों ( हो ), पूजों तृषा निचार I सीमंधर जिन आदि दे, बीस विदेहमँझार ॥ श्री जिनराज हो भव, तारणतरणजिहाज ॥६॥ ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो जन्ममत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ यदि वीस पुंज करना हो, तो इस प्रकारमंत्र पढ़े ॐ ह्रीं सीमन्धर युग्मंधर- बाहु सुवाहु-संजात स्वयंप्रभ ऋषभानन - अनन्तवीर्य-सूराभ- विशाल कीर्ति-वज्रधर-चन्द्रान. न चन्द्रवाहु-भुजगम ईश्वर-नेमिप्रभ-वीर- महाभद्र देवयशाऽजितवीर्येति विशितिविद्यमानतीर्थंकरेभ्यो जन्ममृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ||१|| तीन लेक के जीव, पाप आताप सताये । तिनको साता दाता, शीतल वचन सुहाये ॥ वाचन चंदनसों जजूं (हो) भूमनतपन निरवार। सीमं० ॥२॥ ॐ हों विद्यमान विंशतितीर्थंकरेभ्येा भवातापविनाशनायचन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ||२|| 4 यह संसार अपार, महासागर जिनस्वामी तातें तारे बड़ी भक्ति-नौका जग नामी ॥ तंदुल अमल सुगंधसों ( ही ), पूजों तुम गुणसार | सीमं० ॥ ३ ॥ ॐ० हीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो अक्षय पदप्राप्तये अक्षतान निर्व० ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116