Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir
View full book text
________________
जैन प्रन्य-संग्रह।
१३६
हरिवंशसमुद्भूतोऽरिष्टनेमिर्जिनेश्वरः । ध्वस्तापसर्गदत्यारिः पावो नागेन्द्रपूजितः ॥४. फर्मान्तकृन्महावीर: सिद्धार्थकुलसम्भवः । एते सुगसुरोघेण पूजिता विमलत्विषः ॥५॥ . पूजिता भरतायश्च भूपेन्द्रभू रिभूतिभिः । चतुर्विधस्य सङ्घल्य शान्ति कुर्वन्तु शाश्वतिम् ॥६॥ जिने भक्तिपिने भकिर्जिने भक्तिः सदाऽस्तु मे। सम्यक्त्वमेव संसारवारणं मोक्षकारणम् ॥७॥
(-पुष्पांजलि क्षेपण) । श्रुते भक्तिः श्रु भक्तिःश्रुते भक्तिः सदाऽस्तु मे। सम्यक्त्वमेव संसारचारणं मोक्षकारणम् ॥८॥
(पुष्पांजलि क्षपण) गुरी भक्तिगुरी भक्तिगुरी भक्तिः सद ऽन्तु मे। वारित्रमेव संसारवारणं मोक्षकारणम् ॥en
(पुष्पांजलि क्षेपण)
अथ देव जयमाला प्राकृत ।. वत्ताणुहोणे जणघणुदाणे पइपोसिउ तुहु ख़त्तधरु । तुहु चरणविहाणे केवलणाणे तुहु परमप्पउ परमपरु ॥१॥ .
जय रिसह रिसिसर णमियपाय । जय अजिय जियं. गमरोसराय । जय संभव संभवकय विमाय । जय अहिणंदण पदिय पोय ॥२॥ .

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116