Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 23
________________ • बड़ी जैन-ग्रन्थ-संग्रह। हमारी, तुम चेतो सब ही नारी । तुम सो सुधार, कन्या विनय करै हैं । तुम घोर अविद्या टारो, अब अपनी दशा सुधारो। त्यागी कुविचार, कन्या विनय करै हैं ॥ विषयों ले करके यारी, क्यों अपनी देशा विगारी। करो जल्दी उपशार, कन्या विनय कर हैं। संती अंजना गयी निकारी, वह रोती आँन् दारी । अव लगा शील में दाग, कन्या विनय कर हैं। ये शील महातम भारी..वन में भी हुमा सुखारी। फिर मिल गये कुमार, कन्या विनय करै हैं । हा सीता शील अपारी, कूदी थी अग्नि मझारी। हुई अग्नि जल धार, कन्या विनय करै हैं ॥ मैं विनय कम कर जोरो, सुन लो माताओ मेरी । करो शिक्षा संचार, कन्या विनय करै हैं ॥ खुशामद का भजन । खुशामद ही से आमद है. बड़ी इसलिये खुशामद है। टेक । महाराज ने कहा एक दिन, बैंगन बड़ा बुरा है। खुशामदी ने कहा, तभी तो, वेगुन नाम पड़ा है। खुशामद से सब कुछ रद है, बड़ो इसलिये खुशामद है । टेक महाराज कुछ देर में वोले, बैंगन तो अच्छा है। खुशामदी ने कहा तभी ता, शिर पर मुकुट धरा है ।। खुशामद में इतना मह है, बड़ी इसलिये खुशामद है । टेक स्वामी दिन को रात कहे तो, वह तारे चमका दें। यदि वह रात को दिन कह दें तो, सूरज भी दिखलाः ॥ खुशामद की भी कुछ हद है, बड़ी : नलिये खुशामद है । टेक स्वामी कहें मद्य कैसा है ? कहें सुरा सुखकर है। स्वासी पूछे हिंसा जायज ? कह दें जीत्र असर है॥ पुरा है भला, भला वह है, बड़ी इसलिये खुशामद है । टेक

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