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बड़ा जैन ग्रन्थ-संग्रह |
सेवक साहब की दुविधा न रहे प्रभु जी करिये सु भलाई ॥ केरनमों सुकरोंभरजी जसु जाहर जानि परे जगताई || वारहिं० ॥ २४ ॥ ये विनती प्रभु के शरणागति जे नर चित्त लगाय करेंगे । जे जगमें अपराध करे अघ ते क्षणमात्र भरे में हरेंगे । जे गति नीच निवास सदा अवतार सुधी स्वरलोकधरेंगे । देवीदासकहें क्रम सों पुनि ते भवसागर पार तरेंगे ||२५||
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शीलमहात्म्य |
जिनराज देव कीजिये मुझ दीन पर करुना । भवि वृन्दको अव दीजिये बस शीलका शरना ॥ टेक ॥ शीलकी धारा में जो स्नान करें हैं। मल कर्मको सो धोय के शिवनार वरें हैं ॥ व्रतराज सो वैताल व्याल काल डरें हैं । उपसर्ग वर्ग घोर कोट कष्ट टरें हैं ॥ १ ॥ तप दान ध्यान जाप जपन जोग अचारा । इस शील से सव धर्मके मुह का है उजारा ॥ शिवपन्थ ग्रन्थ मंध के निर्ग्रन्थ निकारा । विन शील कौन कर सके संसार से पारा ||२|| इस शीलले निर्वाण नगरी है अवादी । त्रेसठ शलाका कौन ये ही शील सवादी ॥ सब पूज्य की पदवी में है परधान ये गादी । अठारा सह भेद भने वे अवादी ||३|| इस सील से सीता को हुआ आग से पानी । पुर द्वार खुला चलनिमें भर कूप सो पानी ॥ नृप ताप रा शील से रानी दिया पानी । गङ्गामें ग्राह सों बचीं इस "शीलसे रानी ॥ ४ ॥ इस शोल हीसे साँप सुमन माल हुआ है । दुख अंजना का शील से उद्धार हुआ है | यह सिन्धुर्मे श्रीपालको आधार हुआ है । वप्राका परम शील होसे यार हुआ है ||५|| द्रोपदी का हुआ शीलसे अम्बर का अमारा । जा धातु द्वीप कृष्ण ने सव कष्ट निवारा ॥ सब चन्दना सनी की व्यथा शीलने टारा।