Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 40
________________ जैन-ग्रन्थ-संग्रह। & श्रेष्ठ पक्षी १० मिष्टवादी, ११ दीर्घ विचारी, १२ दानवन्त, १३ शीलवन्त, १४ कृतज्ञ, १५ तत्वज्ञ, १६ धर्मज्ञ, १७ मिथ्यात्व-रहित, १८ सन्तोषवन्त, १६ स्याद्वादभाषी, २० अभक्ष-त्यागी, २१ षट्कर्म-प्रवीण। । श्रावक की ५३ क्रियायें। ८ मूलगुण, १२ व्रत, १२ तप, १ समताभाव, ११ प्रतिमा, ४ दान, ३रतत्रय, १ जल-छाणन-क्रिया,१रात्रिभोजन-त्याग और दिन में अन्नादिक भोजन सोधकर खाना अर्थात् छानबीन कर देख-भाल कर खाना। श्रावक के - मूलगुण-पू उदम्बर। ३ मकार। १२ व्रत-५ अणुव्रत, ३ गुणवत,४ शिक्षावत। ५ अणुवत-१ अहिंसाअणुव्रत, २ सत्याणुव्रत, ३ परस्त्री त्याग अणुव्रत, ४ अचौर्य (चौरी-त्याग अणुव्रत), ५ परिग्रहप्रमाण अणुव्रत । ३.गुण व्रत-१ दिग व्रत, २ देशघ्रत, ३ अनर्थ दंड-त्याग ४ शिक्षाव्रत-१ सामायिक, २ प्रोषधेापवास, ३ अतिथिसंविभाग, ४ भोगोपभोग परिमाण । १२ तप- आचार्य के ३६ गुणों में लिखे हैं । इनके भी वही नाम हैं। ज्यादे इतना है कि मुनियों के महान ब्रत होते हैं । श्रावकों के अणुव्रत अर्थात् कम परीषहवाले। . . ... ११ प्रतिमा-१ दर्शनप्रतिमा, २ व्रत, ३ सामायिक, ४ मोषधोपवास, ५ सचिचत्याग, ६ रात्रिभुक्ति-त्याग, ७ ब्रह्म

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