Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ जैन-प्रत्य-संग्रह। महाबीराष्टक स्तोत्र। कविवर भागचन्दजी कृत। शिखरनी छन्दा यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचितः । सम मान्ति धौव्यं व्यय जनिलसन्तोऽन्तरहितः जगत्साक्षी मार्गप्रकटनपरो भानुरिया सहावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (ना) १ अतानं यच्चक्षुः कमलयुगलं स्पंदरहितम् जनाकोपापायं प्रकटयति वास्यन्तरमपि स्फुटं मूत्तिर्यस्य प्रशमितमयी वातिविमला महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु से (न:) IRIL नमन्नाकेन्द्राली मुकुट मणिंभाजाल जटिल लसत्पादाम्लोज द्वयमिह यदीयं तनुमतां सवज्रालाशान्त्यै प्रभवति जलं वा स्मृतमपि महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (न:) ॥३॥ यदोभावेन प्रमुदितमना ददुर इह क्षणादासीत्स्वगी गुणगणसमद्धः सुखनिधिः लभन्ते सद्भक्ताः शिवसुखसमाज किमु तदा ? महावीर स्वामी नवनपय गामी भवतु भे (न:)॥४॥ कनत्स्वर्णाभासोऽप्यपगततनुर्ज्ञाननिवहो विचित्रात्माप्येको नपतिवरसिद्धार्थतनयः अजन्मायि श्रीमान विगतभवरागोद्धतगतिर महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (ना) ॥५॥ यदीया वागाडा विविधनयकरलोलविमला बृहज्ज्ञानाम्भाभि गति जनतां या स्लपयति

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116