Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 74
________________ जैन-प्रन्य संग्रह। मुक्तिश्रीवनिताकगेदक मिदं पुण्याङ्कोत्पादक नागेन्द्रनिःशेन्द्रचक्रपदवोराज्याभिषेकोदकम् । सम्यग्ज्ञानचरित्रदर्शनलासंवृद्धिसंपादकं : कीश्रीज्यसाधकं तब जिन स्नानस्य गन्धोदकम् ॥१७॥ (यह श्लोक पढ़कर गन्धोदक लेकर मस्तक पर लगाना चाहिये) इति लघुभिषेक पाठ। ... . विनयपाठ। इहि विधि ठाडो होय के प्रथम पढ़े जो पाठ। धन्य जिनेश्वर देव तुम नाशे कर्म जु पाठ ॥१॥ अनंत चतुष्टय के धनी तुम ही हो शिरताज । मुक्ति बधू के कंथ तुम तीन भुवन के राज ॥२॥ तिहुँ जग की पड़ा हरण भवदधि शोषतहार । ज्ञायक हा तुम विश्व के शिव सुखके करतार ॥३॥ हरता अघ अँधियार के करता धर्म प्रकाश । . थिरता:पद दातार हो धरता निजगुण रास । ४॥ धर्मामृत उर जलसों ज्ञान भानु तुम रूप । तुमरे चरण सरोज के नावत तिहुँ जग भूप ॥५॥ मैं चन्दौं जिनदेव कों,कर अति निरमल भाव । कर्म बंदके छेदने. और न कोई उपाय .६॥ भविजन को भविं कूप तैं तुमही काढ़न हार । दीनदयाल 'अनाथपाते अन्तिमगुण भंडार ॥ चिदानन्द निर्मल कियौ धोय. करम रज मैल । शरल करीया जगत मैं भविजनको शिव गैल ॥८॥

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