Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ . पुकार पच्चीसी। - - - आय गयो क्षणमें विरधापन सो नर भौ इस भाँति गमाईबारहि ॥ .. देव भयों सुर लोक विर्षे तव मेंहि रही परया उर लाई । " पाय विभूति बढ़े सुरकी पर सम्पति देखत भूरत छाई ॥ . . . . माल जचे मुरझाय रहो थित पूरण जानि.तवें विल-लाई बारहि०१६॥ जे दुख मैं भुगते भवके तिनके वरणे. कहुं पार न पाई । .... काल अनादिन आदि भयो तहँ मैं दुख भाजन हेअघ माहीं.. सो दुख जानत हो तुमही जवहीं यह भांति धरीपर्यायी वारहिं०१७॥ कर्म अकाज करे हमरे हमको चिरकाल भये दुखदाई। मैं न विगाड़ करो इनको बिन कारण पाय भये अरि आई। मात पिता तुमहीं जगके तुम छोडि फिगदि करों कह जाई ॥बारहिं० सो तुम सो सब दुःख कहो प्रभु जानत हो तुम.पीर पराई ।:: मैं इनको सत्संग कियो दिनहूँ दिन अ'वत मोहिं बुराई ॥ ज्ञान महानिधि लूट लियौ इन रङ्क किया यह भांति हराई ॥वारहित मैं प्रभु एक सरूर सहो सब ये इन दुष्टन को कुटलाई।.... पाप सु पुण्य दुहूं निज मारग में हमसो नहिं फांसि लड़ाई ॥..... मोहि थकाय दियो जगले विरहानलं देह है न.बुझाई ॥बारहिं०॥२०॥ ये विनती सुन सेयक की निज मारग में प्रभु लेव लगाई .. .. . मैं तुम - तास रहो तुमरे संग लाज करो शरणागति आई ॥ ..... मैं कर दास उदास भयो तुमरी गुणमाल सदा उर लाई आधारहिं ॥२१॥ देर करो मत श्री करुणानिधि जू यति राखनहार निकाई। योग जुरे क्रममा प्रभुजी यह न्याय हंजूर भयो तुम आई.॥ . ::: आन रहो शरणागति हों तुम्हरी सुनिवे तिहुं लेक बड़ाई ॥ वाहि०२२॥ मैं प्रभु जी तुम्हरी समंको इन अन्तर पाय करो दुसराई। . . . . न्याय न अन्त कटे हमरो न मिले हमको.तुम सी उकुराई..... सन्तन राख करो अपने ढिग दुष्टंनि देहु निकास बहाई । वारईि०॥२३॥ दुष्टन की सत्संगति में हमको. कछू जान परी न निकाई। :::

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116