Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir
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=२
มี
बड़ा जैन ग्रन्थ-संग्रह |
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पयानी | भव डूबत बोधे प्राणी, जिन ये वसन्त जिय जामी ॥ चेतन सो खेलें होरी, ज्ञान पिचकारी, योग जल लाके ॥११॥ जिम० जबलगे महीना फाग करें अनुराग, सभी नरनारी । ले फिरे फैंटमें कर गुलाल पिचकारी || जब श्रीमुनिवर गुणखान अचल धर ध्यान, करें तप भारी । कर शील सुधारस कर्मन ऊपर डारी | ( झड़ ) - कीर्ति कुम कुमें घनावें, कर्मोंसे फाग रचावें । जे बारामासा गावें, से अजर अमर पद पा ॥ यह भाषै जीया-. चाल, धर्म गुणमाल योग दर्शाके ॥ १२ ॥ जिन अधिर लखाe
बारहमासा - राजुल ।
राग मरहठी [झड़ी ]
मैं लूंगी श्रोअरहन्त, सिद्ध भगवन्त, साधु सिद्धान्त चारका सरना । निर्नम नेम विन हमें जगत् क्या करना - ॥ टेक आषाढ़ मास (झड़ी)
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सखि आया अषाढ़ घन घोर, मोर चहुंओर, मचा रहे शोर इन्हें समभावो । मेरे प्रीतम की तुम पवन परीक्षा लावो ॥ हैं कहां मेरे भरतार, कहां गिरनार, महाव्रत धार वसे किन घन में । यो बांध मोड़ दिया तोड़ क्या सोची मन में !
( भर्बर्ट) नजारे पपैया जारे, प्रीतमको दे समकारे । रहिनों भव संग तुम्हारे, क्यों छोड़ दई मधारे ॥
(झड़ी) - क्यों विना दोष भये रोष, नहीं सन्तोष, यही अफसोस बात नहिं बूझो । दिये जादों छप्पन कोड़ छोड़ क्या सूझी। मोहिं राखो शरण मंझार, मेरे भर्तार, करो उद्धार, क्यों दे गये भुरना । निर्लेम नम बिन हमें जगत् क्या करना
श्रावण मास (झड़ी)
सखि श्रावण संचर करे. समन्दर भरे, दिगम्बरधरं क्या

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