Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 22
________________ शील के भेद, कन्या विनय । - - - -- - - क्षमा लज्जा को मार भगाया। भकोका मूल नाश करवाया। हो इसके उपासकरौरव के अधिकारी । है यही०॥४॥ वह नव युवकोंको नैन सैनले खाये। और धनवानों को चट्ट गट्ट कर जावे ॥ धन हरण कर फिर पीछे राह बतावे । करे तीन पांच तो जूते भी लगवावे ।। पिटवा कर पीछे ल्यावै पुलिस पुकारी। है यहो. ॥५॥ फिर किया पुलिस ने खूब सतिथि सत्कारा । हो गई सजा मिला मा इश्क का सारा | जो झूठ होय तो सज्जन करा विचारा|दोत्याग झूठ करो सत्य वचन स्वीकार ।। अब तो कर्म यह भति निन्दत दुखकारी । है यही सकल रोगगेको खानि इत्यारी ॥६॥ शील के भेद । ये भेद शोल के जाना जो हो सतवंती नारी-टेक पर पुरुषों से बात न करना, पिंडुक जन का साथ न करनापर घर वाला रात न करना, काम कथा मत गारी ॥ जो हो. इक आसन पर कभी न बैठो, पर पुरुषों के साथ न सेठी-- पिता भ्रात पति को तुम भेंटो, वनो कुटुम की प्यारी ॥जो हो. पर पुरुषों के अंग न निरखो, अंग कीती सुन मत होंकुटिल सरल को मन से परखो, तू नीची नजर रखारी॥जो हो हाट बाट में खड़ी न होना, किले घर में जाय न सोना-, जैनी, समय व्यर्थ ना खोना, लज्या से सुयश बहारी ॥ जो हो. कन्या विनय करै हैं। मव करो विचार, कन्या विनय करै हैं ॥ अचान महा नदि भारो, हम इय रहीं अब सारी | तुम करो उवार, कन्या विनय कर हैं। अज्ञान तिमिर अंधियारी, अब छाई कारी कारी । तुम फरो उजार, कन्या विनय करै हैं ॥ विद्या इस जग में प्यारी, सुग्व देतो.हमको भारी-तुम करो प्रचार, कन्या विनय कर हैं । बिगड़ी है दशा

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