Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 20
________________ घड़ा जैन-प्रन्थ-संग्नह । भच्छा यह नशा निकाला, दोजख में गिराने वाला हुक्केवाज-यह महफिल का सरदार, क्या जाने मूढ़ गंवार । विरोधी-कब तक कि हुक्का नोशौ मुहल्ला जगाओगे। घंशी बजा के नाग को कबतक खिलाओगे। एक दिन यह मारे आस्तों उसेगा बस तुम्हें । पंजे से ऐसे देव के वचने न पाओगे ॥ गर चाहते हो जिन्दगो तो इसको तरक करो। खुद अपना वरना खिरमने हस्तो जलाओगे | (चलत)-जिन इससे प्रीति लगाई, आखिर में हुई दुखदाई। मान कहा क्यों पागल वनता कहां गई चतुराई ॥ मत० हुक्केबाज-तेरी मान नसीहत छोडू', ले अभी चिलम को तोडू। नहचे को तोड़ मरोडू, हुक्के को जमी से फोडू॥ ना पीऊ कभी यह हुक्का, लानत लानत यह हुक्का। न पिया कोई यह हुक्का, वेशक लामत यह हुक्का ।। सिगरेट का ड्रामा। पीनेवाला-यारो मुझे सिगरेट या बीड़ी दिलाना। वीड़ी दिलाना, माविस लगाना कैसा यह फैशन बना॥ विरोधी-शेम २-छोड़ो जरा सिगरेट का पीना पिलाना। ' पीना पिलाना दिल को जलाना नाहक क्यों करते गुनाह ॥ पीने-दुर२-है जेव खाली डिबिया भी खाली छूटता नहीं यह नशा । विरोधो-शेमरमदिरा पड़ो इसमें लीद भरीहै लानतहै लानतहै नशा॥ पीने-दूर२ वाते हैं कैसी दीवानों यह जैसी गप शपलगातेहो क्या। विरायो-शेमर-हावेगी स्वारी नरकों की तैयारी हटको तात्यागो जरा पीने-दूर२ पीवो पिलाचो जरा मुहको लगावो कैसा यह शीरीं अहा विरोधी-शेमर-शोएल पुकारे जिन दास प्यारे सोचो तो दिल मेंजरा

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