Book Title: Bada Jain Granth Sangraha
Author(s): Jain Sahitya Mandir Sagar
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 16
________________ द्रव्यसंग्रह-मूल । ३७ द्रव्यसंग्रह - मूल । [ श्रीमन सिचन्द्र सिदान्तचक्रवर्ती कृत ] जीवमजीवं दव्वं जिणवरवसहेण जेण णिद्दिट्ठे' । देविदविंद वंद वंदे तं सव्वदा सिरसा ॥ १ ॥ जीवा उवओगमओ अमुत्ति कत्ता सदेहपरिमाणो । भोत्ता संसारत्या सिद्धो सा विड्ढि गई || २ || तिफाले चदुपाणा इंदिय बलमाउ आपाणो य । ववहारा से जीवा णिश्चयणयदेो दु चेदणा जस्स ॥ ३ ॥ उवओोगो दुवियप्पा दंसणं णाणं च दंसणं चदुधा । चक्खू अचक्खू ओही दंसणमध केवलं पेयं ॥४॥ गाणं अटूट वियप्पं मदिसुदओही भणाणणाणाणि । मगपज्जय केवलमचि पच्चक्षपरोक्खभेयं च ॥ ५ ॥ अट्ठचदुणाणदंसण सामरणं जीवलक्षणं भणियं । ववहारा सुद्धगया सुद्ध पुण दंसणं जाणं ॥ ६ ॥ चरण रस पञ्च गंधा दो फासा अट्ट णिच्चया जीवे । णा सति अमुन्ति तदो चवहारा मुत्ति वंधादो ॥ ७ ॥ पुग्गलकम्मादीणं कत्ता ववहारदेो दु णिच्चयो । चेदणक्रम्माणादा सुद्धणया सुद्धभावाणं ॥ ८ ॥ ववहारा सुहदुक्खं पुग्गलकम्म फलं पभुजे दि । आदाणिच्चयणयदो चेदणभावं खु आदस्स ॥ ६ ॥ अणु गुरु: देहपमाणो उवसंहारम्पसम्पदा चेदा असमुहदा ववहारा निचयगयदा असंखदेसेो वा ॥ १० ॥ पुः विजलते उबाऊवणष्पदी विवादी | विगतिग चदुपंचक्खा तसजीवा होंति संवादी ॥ ११ ॥ समणा अमणा णेया पंचेन्द्रिय णिम्मणापरे सव्वे | बादरहमेदी सव्वे पज्जन्त इदरा य ॥ १२ ॥ मग्गणगुणठाणेहिं य चउदसहि हवंति तह असुद्धणया । विराणेया ससारा सव्वे खुद्धा हु सुद्धगया ॥ १३ ॥ णिक्कम्मा अट्ठगुणा

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