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जैन गणित के तुलनात्मक अध्ययन से यह निष्कर्ष सहज ही निकाला जा सकता है कि जैन पीथागोरस के गणित सिद्धान्त से परिचित थे अथवा सम्भव हे पोथागोरस ने यह ज्ञान जैनों से ही लिया हो। भगवान महावीर और पोथागोरस. के काल में बहुत कम अन्तर है। लेखक के अनसार या तो दोनों समकालीन थे या महावीर पीथागोरस से कुछ ही पहले हए थे। कुछ भी हो लेख गरिणत विषय में बड़े ही रोचक तथ्य उपस्थित करता है और गणित विषयक अनुसंधित्सुओं के लिये बड़े वाम का है।
अन्त में दो शब्द ग्रन्थ की छपाई प्रादि के बारे में भी कहना है। छपाई करते समय कहीं कहीं कुछ टाइप ट जाने से कई स्थानों पर वे अक्षर छपने में नहीं आए हैं । अंग्रेजी के कुछ लेखों में चिन्हित टाइप की प्रेस में कमी हो जाने से कहीं कहीं वे टाइप ही नहीं लगाये जा सके हैं और साधारण टाइप लगा कर ही वहाँ काम चलाया गया है। विशेषकर 'The Nasal's Influence upon the Neighbouring syllables' में ऐसा हुआ है । कई लेखों की टाइप कापियों में spelling की पर्याप्त अशुद्धियाँ थीं जिन्हें ठीक करने पर भी कुछ अशुद्धियां रह ही गई है। प्रफ पढ़ने में असावधानी के कारण भी कुछ अशुद्धियाँ रही हैं। समयाभाव से और ग्रन्थ शीघ्र पाठकों के हाथ पहुंच सके इस विचार से क्योंकि पहले ही पर्याप्त विलम्ब हो चुका है, ग्रन्थ के साथ शुद्धि-पत्र नहीं लगाया जा सका है। इस सबके लिये हम पाठकों से क्षमाप्रार्थी हैं।
जयपुर ३१ अक्टबर, १९६७
-चैनसुखदास