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श्री बाबू छोटेलालजी-राक मूक सेवक
____ भंवरलाल न्यायतीर्थ, जयपुर
गह किसको पता था कि जिस महान व्यक्ति के ही भामेर जाने का उन्होंने निश्चय किया। डा.
लिए अभिनन्दन की तैयारियां की जा रही सत्यप्रकाराजी-डाईरेक्टर पुरातत्त्व विभाग राजहै-वह इन श्रद्धा सुमनों को ग्रहण करने से पूर्व स्थान से उसी दिन संपर्क स्थापित किया और उन्हें ही हमारी प्राशानों पर पानी फेर सदा के लिए साथ ले में एवं बावूजी पामेर गये । करीब ५०० हम से विदा ले लेगा । जब छोटेलालजी ने सुना वर्ष कछवाहों का राज्य वहाँ रहा है । इस राज्य कि उनके अभिनन्दन की कोई योजना चल रही है वंश के साथ जैनों का विशेष सम्पर्क रहने से यहाँ तो उन्होंने इससे अपनी प्रसहमति प्रकट की और जैनों का भी अच्छा प्रभाव रहा है। आमेर में कहा कि मुझ जैसे छोटे से प्रादमी के लिए ऐसा मट्टारकों की गद्दी थी । भट्टारको में बहुत से विद्वान प्रायोजन उचित नहीं है । वे मूक सेवक थे-प्रतः थे जिनने महत्वपूर्ण साहित्य संग्रह एवं रचनाएँ की उन्हें यह अभिनन्दन नहीं जवा और हुआ भी यही। थी। वहाँ का शास्त्र भंडार विशाल था। आमेर में वे चले गये बिना अभिनन्दन स्वीकार किये ही। कई विशाल मंदिरों का निर्माण हुआ था । वहाँ के अब तो यह अभिनन्दन ग्रंथ स्मृति मंच के स्वरूप खण्डहरों में प्रतीत का वैभव छिपा पड़ा है। में ही परिवर्तित हो गया है। सचमुच बाबूजी महान थे-उनकी सेवाएं, उनके विचार और उनके
हम लोगों ने करीब दो तीन घन्टे तक घूमकर
कई स्थानों के चित्र लिए मगर हमारी ओर से प्रादर्श महान थे । वे कर्मठ और मिशनरी स्प्रिट
यह प्राग्रह होते हुए भी कि ग्राप की तबियत ठीक से कार्य करने वाले एक लगन शील व्यक्ति थे ।
नहीं है, पाप एक जगह बैठिए हम चित्र ले पाते अपने कार्य कलापों से वे अपनी स्मृति को स्थायी
हैं बाबूजी हमारे साथ ही रहे । ऐसा लगता था बना गये हैं । उनके संस्मरण वास्तव में प्रेरणा
जैसे उनमें बहुत जोश आ गया हैं । वे जरा भी
थकान महसूस नहीं कर रहे थे। यह था उनका श्री बाबू छोटेलालजी से मेरी भेंट सर्व प्रथम उत्साह, लगन और कार्य के प्रति निष्ठा । बीमारी करीब १५-१६ वर्ष पूर्व हुई जब पाप जयपुर पधारे का हर व्यक्ति ध्यान रखता है और धनाढ्य के ये मोर स्वास्थ्य लाभ के लिए यहाँ ठहरे थे। वैसे यदि साधारण सर्दी जुकाम भी हो जाता है तो नाम पहले से सुना था-पर साक्षात्कार दिगम्बर डाक्टरों का तांता लग जाता है, वह पलंग से भी जैन संस्कृत कालेज में पूज्य गुरुवयं पं० चैनसुख नहीं उठता। पर बाबूजी इसके अपवाद थे । अपने दासजी के समक्ष हुमा था। चर्चा चल रही थी कि शरीर और स्वास्थ्य को पर्वाह न करते हुए पुरातत्त्व जयपुर के विभिन्न स्थानों पर बिखरी पुरातत्व सम्बन्धी शुष्क काय में इतनी लगन रखना सचमुच सम्बन्धी सामग्री का संकलन किया जाय । उनके प्रशंसनीय है। बात यह है कि इसके महत्व को विचारों से यही प्रेरणा मिल रही थी कि जो काम वे खूब समझते थे । जयपुर में ही नहीं, इसी कार्य करना है-धीन किया जाय, उसमें विलम्ब नहों के लिये वे सारे भारत में धूमे मोर काफी सामग्री होना चाहिए । अस्वस्थ होते हुए भी दूसरे दिन का संकलन किया जो प्राज उनकी थाती है।