Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 227
________________ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ १७२ दिया था। मालूम होने पर पं० जगतराम ने उससे धीनकर मोतीकटने में रक्खा, मौर रचनाओं के नष्ट होने के भय से सं० १७८४ में माघ सुदी १४ को मैनपुरी में समाप्त किया है। 1 सोलहवें कवि बासीलाल है, जो दिल्ली के निवासी थे इन्होंने सेठ सुगनचन्द जी के विद्वान पुत्र गिरधरलालजी से, जो प्राकृत संस्कृत के अच्छे विद्वान थे और नये मन्दिर जी में शास्त्र प्रवचन किया करते थे। प्राकृत वैराग्य शतक का हिन्दी घयं जानकर जीवमुखराय की प्रेरणा से उन्हीं के पठनार्थ हिन्दी भाषा में पद्यानुवाद किया था । कृति का रचना काल सं० २००४ पोषमुदि दीइज है। दोहे रोचक धौर भाव पूर्ण है। सत्रहवें कवि जगतराय हैं जो सिंघल गोत्री थे। इन्होंने संवत् १७२२ में पद्मनंदि पच्चीसी का पद्यानुवाद किया था । अठारहवें कवि सन्तलाल हैं जो नकुड़ जिला सहारनपुर के वासी थे। इन्होंने सिद्धचक्र का पाठ हिन्दी पद्यों में बनाया है । इनका जन्म सं० १८३४ में हुआ था और मृत्यु [सं० १८८६ में ये अंग्रेजी भाषा के भी विद्वान थे। इनके अतिरिक्त पं० इरगुलालजी खतौली, बावरला रत्नलालजी दिल्ली, पं० मेहरचन्दजी सुनिपत पं० ऋषभदासजी चिलकाना ( मिथ्यातिमिरनाशक नाटक के कर्ता ) पं० मंगतराय जी प्रावि धनेक विद्वान है, जिनका परिचय लेख वृद्धि के भय से छोड़ा जाता है । पं० निहालचन्दजी अग्रवाल ने सं० १८६७ में नयचक्रपर भावप्रकाशिनी टीका लिखी थी। नन्दराम गोयल गोत्री ने सं० १९०४ में योगसार टीका फाल्गुन सुदी १ वी चन्द्रवार के दिन ) धागरा के ताजगंज के पार्श्वनाथ चैत्यालय में श्रावकोत्तम ठाकोरदास, रिषभदास भोर पन्नालाल के उपदेश से बनाई थी । इस तरह अप्रवास समाज द्वारा जैनधर्म की सेवा, उसके विस्तार एवं प्रचार आदि का कार्य किया जाता रहा है। इस लेख में सं० १९८९ से अब तक के समय में होने वाली धर्म धौर साहित्य सेवा का उल्लेख किया गया है। कितने ही विद्वानों का परिचय लेख वृद्धि के भय से नहीं दिया जा सका। इससे पाठक सहज ही वालों के जैनधर्म अग्रवालों के प्रचार तथा प्रसार में योगदान का परिचय प्राप्त कर सकते हैं। वर्तमान में भी सवालों की जैनधर्म के प्रति रुचि पौर जैन संस्कृति के प्रचार-प्रसार का कार्य चल रहा है। साहित्यिक क्षेत्र में वीर सेवा मन्दिर दिल्ली जैन सिद्धांत भवन धारा, धौर भारतीय ज्ञानपीठ काशी अपना कार्य कर ही रहे हैं । ज्ञानदान और श्रीषधिदान में अनेक संस्थाओं के अतिरिक्त दिल्ली का परिन्दों का हम्पताल भी उल्लेखनीय है । वर्तमान में भी इस समाज में अनेक गण्यमान पुरुष हैं जिन का अधिकांश जीवन समाज और साहित्य सेवा में व्यतीत हुआ है अथवा हो रहा है जिनमें बाबू छोटेलाल जी कलकत्ता तथा पं० जुगल किशोर जी मुस्तार यादि के नाम से सारा समाज परिचित है । वास्तव में ही अग्रवाल समाज का जैनधर्म और साहित्य के प्रचार तथा प्रसार में जो योगदान रहा है वह प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है । X X X X

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