Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 231
________________ बाबू छोटेखात जैन स्मृति प्रन्थ वचित कृति प्रद्य म्न चरित को लिया जा सकता रणमल्ल छन्द, मयण रेहा रास प्रादि की वर्णन है। कवि के शब्दों में यह विचित्र प्रदर्भात काव्य भी प्रक्रियामों में इन दोनों परम्पराओं का पृथक पृथक है और श्रद्धा सहित पठ्यमान भी। जैन मुनियों दर्शन भी किया जा सकता है और साम्य भी ढूंढा के चरित लेखन दारा 'त्रिषष्ठि पुरुष चरित की जा सकता है। मादि काल के बाद भी सत्रहवीं सीमा का विस्तार किया गया। यह सीमा विस्तार तक की रास नामधारी अनेक कृतियां प्रकाश में संस्कृत के चरित काव्यों ने ही प्रारम्भ कर दिया प्रा चुकी हैं। था। उदाहरण के लिये गुणभद्र के जिनदत्त चरित डा. प्रोझा ने यह लक्ष्य किया है कि 'वैष्णव का उल्लेख किया जा सकता है । जिनदत्त की कथा किसी कयाकोश या पुराण में उपलब्ध नहीं है। और जैन दोनों प्रकार के रासकों में विश्व-विजय की कामना से प्रेरित कामदेव किसी योगी महात्मा जब रास या रासक काव्य रचना की प्रवृत्ति पर अभियान की तैयारी करता दिखाई पड़ता बड़ी तो सर्व प्रथम जैन कवियों ने ही त्रिषष्ठि पुरुष है।' अन्त में उसकी पराजय भी दिखलाई गई सहित अन्य वर्ण्य चरितों को या उन चरितों की है। इस प्रवृत्ति के जैन काव्यों में 'मयण जुज्झ' प्रमुख घटनाओं को रास या रासक रूप देना प्रारंभ तथा मयण पराजय चरिउ उल्लेखनीय हैं । ममरण कर दिया। भरतेश्वर बाहुबली सम्बन्धी रास पराजय की रचना शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव के इसके प्रमाण हैं। जब इस सीमा से परे भी रास प्राधार पर हुई है । इसमें जिनेन्द्र पर काम का काव्यों का सृजन प्रारम्भ हुआ तो ऐतिहासिक प्राक्रमण और उसकी पराजय का वर्णन हुमा पुरुष और जैन मुनि भी वयं विषय बने । काल्पनिक है। यह दो सन्धियों और कुल एक सो अठारह रास भी प्रस्तुत हुए और हिन्दी साहित्य के प्रादि पद्य खंडों में समाप्त हो गया है। कहने के लिए काल के प्राकृत, अपभ्रंश चरित काव्यों का प्रभाव यह 'चरिउ' है पर इसमें रासक के गुण ही अधिक रास या रासक काव्यों पर भी पड़ा और उन्होंने हैं। इस सम्बन्ध में डा. हीरालाल का यह विचार उसकी सम्पूरणं सीमानों को अपना लिया। इस द्रष्टव्य है-'यथार्थतः यह रचना अपने स्वरूप प्रकार चरित और रास काव्य रचना को दो में अन्य सूज्ञात अपभ्रंश चरितों से विषय व शैली प्रवृत्तियां मात्र रह गई । वर्ण्य के क्षेत्र में दोनों का में कुछ भिन्न है। इसमें उस प्रकार नायक का सम्मिलन हो गया। हिन्दी साहित्य के प्रादि काल चरित्र वर्णन नहीं पाया जाता है, जैसा अन्य के प्रथ्वीराज, वीसलदेव भादि रासो काव्यों की चरित्रों में। यहां का समस्त घटनाचक्र भावात्मक पृष्ठ भूमि यही रही है। चौदहवी शताब्दी की और कल्पित है। यद्यपि परिच्छेद विभाग परित कृतियों पज्जुरण चरिउ, जिणदत्त चरिउ, बाहुबल अन्यों के सदृश सन्धियों में किया गया है, तथापि चरिउ, चंदपप चरिउ, मयण पराजय चरिउ तथा उनमें वस्तु. द्विपदी. प्रडिल्लह और घडडिया कछली रास, गौतम स्वामी रास, समरा रास, छन्दों का प्रायः बराबर का प्रयोग अदल बदल १. श्रीमत्काममहानरस्यचरितं संसारविच्छेदिनः । श्रद्धाभक्तिपराप्रबुद्धमनसा शृण्वंति ये सत्तमाः ।। संवेगात्कथयन्ति ये प्रतिदिनं योऽधीयते संततम् । भूयासुः सकलास्त्रिलोकमहिताः श्रीवल्लभेन्दु श्रियः ।। प्रच०५ ।। श्री भूपतेरनुचरो मघनो विवेकी शृगारभावधनसागर राग सारं। काव्यं विचित्रपरमाद्भुतवर्णगुम्फ सलेक्ष्य कोविदजनाय ददौ संवृत्तम् ॥६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238