Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 233
________________ - - - - सद्भिरेव सहासीत सद्भिः कुर्वीत संगतिम् ।। सद्भिविवादं मैत्री च, नासद्भिर्किचिदाचरेत् ॥ सज्जनों के साथ ही बैठो, सज्जनों के साथ ही रहो, सज्जनों ! | के साथ ही दोस्ती करो, सज्जनों के साथ ही झगड़ा करो, तात्पर्य जो। कुछ भी आचरण करो केवल सज्जनों के साथ ही करो, असत्पुरूपों । के साथ जरा सा भी किसी भी प्रकार का सम्पर्क मत रखो। वृत्त यत्नेन संरक्षेत् , वित्तमायाति याति च। अक्षीणो वित्ततः क्षीणो, वृत्ततस्तु हतो हतः ॥ अपने चरित्र की प्रयत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिये क्योंकि धन , चले जाने पर भी मनुष्य क्षीण नहीं होता, उसका कुछ नहीं बिगड़ता। । किन्तु जिसका चरित्र नष्ट हो जाता है यह मनुष्य तो मरे हुए के समान !

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