Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 127
________________ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रथ ७३ द्वितीय के साथ किया है। प्रतिहारों का मूलस्थान राजस्थान में था और उनकी राजधानी संभवतः जालौर थी। नागभट द्वितीय के समय में ४ प्रतिहारों ने कन्नौज जीता और वहीं अपनी राजधानी बदली । सम्भवतः इस ऐतिहासिक तथ्य को ध्यान में न रखने के कारण ही बप्पभट्टिवरित में ग्राम-नागावलोक को कन्नौज के राजा यशोवर्मन का पुत्र और उत्तराधिकारी बताया है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह बात सत्य जान पड़ती है क्योंकि नागावलोक का शासनकाल इसी ग्रंथ के आधार पर लगभग ७९२-८३३ ६० स० तक रहा है। यह समय कन्नौज के शासक यशोवर्मन ( ई० स० ७२४ -७५२) के बहुत बाद का है प्रतः इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता पठारी स्तम्भलेख के धनुसार राष्ट्रकूट कर्क ने नागावलोक को पराजित किया था। सम्भवतः उसने गोबिन्द तृतीय के साथ उत्तरभारतीय युद्धों में भाग लिया जिसमें नागभट द्वितीय की पराजय हुई थी। इसी नागभट्ट के प्रपितामह नागभट प्रथम को भी उसके भडोंच । 6 के सामन्य राजा भतृवष्य द्वितीय के हन्सोट अभिलेख में नागावलोक कहा है । अतः यह संभव है कि कुछ प्रतिहार सम्राटों ने नागावलोक की उपाधि धारण की हो । बप्पभट्टिचरित में भी इसे उपाधि के रूप में ही बताया गया है। इसके अतिरिक्त स्कन्द पुराण के धर्मारण्य महात्म्य में कन्नौज के ग्राम-नामक राजा का वर्णन है जो सार्वभौम राजा था और जिसके समय में जैनधर्म का प्रचार हुआ था। यह वन चप्पभट्टि के ग्रामनागावलोक से बहुत मिलता है। E ८वीं-हवीं और १०वीं शतियां भारतीय इतिहास में प्रत्यन्त महत्व की है । कन्नौज के प्रतिहार बंगाल के पाल तथा दक्षिण के राष्ट्रकूटों में खिल भारतीय प्रमुख के लिये एक भयंकर संघर्ष इसी समय हुआ था । कन्नौज के प्रतिहार भोर बंगाल के पाल गंगाघाटी पर अधिकार करने लिये किस तरह निरन्तर युद्धरत रहे थे इसका प्रमाण उनके शत्रु राष्ट्रकूटों के अभिलेखों से भी प्राप्त होता ४. जैन ग्रन्थ कुवलयमाला के अनुसार ई० स० ७७८ में वत्सराज जाबालिपुर (जालोर) का शामक था। इस वत्सराज को विद्वानों ने प्रतिहार राजा वत्सराज माना है। ६. वही. भा० १२. पृ० २०२ । ५ एपि० इंडि० भा० ६, पृ० २५५ । ७. इदानी च कलौ प्राप्ते धामो नाम्ना वभूव हि कान्यकुब्जाधिपः श्रीमान धर्मो नीतिततरः ॥११॥ एसत्त्वा गुरोरेव कान्यकुब्जाधिपो बलि राज्यं प्रकुरुते तत्र मामी नाम्नाहि भूतले ||३४|| सार्वभौमत्वयापत्रः प्रजापालनतत्परः । प्रजानां कलिना तत्र पापे बुद्धिरजायत ||३५|| वैष्णवं धर्ममुत्सृज्य बौद्धधर्ममुपागताः । प्रजास्तमनुर्वातन्यः क्षपणैः प्रतिबोधिताः ॥३६॥ अधुना वाडव घष्ट ग्रामो नाम महीपतिः शासनं रामचन्द्रस्य न मानयति दुर्मतिः जामाता तस्य दुष्टो वै नाम्ना कुमारपालकः पाण्डवेष्टितो नित्यं फालधर्मेण सम्मतः इन्द्र जैनेन प्रेरित बौद्धधर्मणा । १६४-६६ । स्कन्दपुराण ब्रह्मखंड-धर्मारण्य महात्म्य | ऐसा प्रतीत होता है कि इस पुराण में जैन धर्म और बौद्ध धर्म में अंतर नहीं रखा गया है। दोनों का ही एक साथ उल्लेख इस प्रसंग में किया गया है। एक दूसरे प्रसंग में इस पुराण में मोहेरक नामक नगर की चर्चा है। प्रभावक परित् के अनुसार वप्पमट्टि के गुरु सिद्धसेन मोडेरक के निवासी थे क्या इन दोनो में श्रभिन्नता संभव नहीं ? प्रश्न विचारणीय है । लेखक के विचार में इनकी समानता गुजरात के मोढेरा से हो सकती है। धाम नागावलोक का प्रभाव गुजरात तक था। ग्वालियर प्रशस्ति में उसके द्वारा भावर्त के अपहरण का उल्लेख है । वप्पभट्टिचरित के अनुसार भी उसने सोमनाथ की यात्रा की थी।

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