Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 193
________________ १३८ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ राम-स्यग्रोध की शीतल छ.4 फैली हुई है। सकें, तो बड़ा सौभाग्य हो । राम-लक्ष्मण तैयार मैथिलीशरण गुप्त में पारिवारिक मिठास है। उन्होंने नहीं हुए। वह बड़बड़ाती घर चली गयी । लक्ष्मण पुनः जाति को उभारा है और एकता का प्रयत्न उस दिव्य स्त्री के रूप एवं गुण पर अनुरक्त हो किया है। उनके ग्रंथों में भी भावना प्रतिष्ठा की चुके थे। वे अन्य किसी व्याज से उसको ढूढने भी ही है और मामह भी व्यक्ति-सुधार पर है लेकिन गये लेकिन खाली हाथ लौट पाये। चन्द्रनखा ने भी कर्म-सौंदर्य के परिवेश का प्रभाव नहीं है । मार्ग में नखों से प्रपा पार्श्व और उरु प्रदेश बाल्मीकि के राम में मृगया की भावना जाति गत विदीर्ण कर लिया। उसके केश विखरे थे और नेत्र है. तलसी के राम में देवकार्य का प्राग्रह व्यक्तिगत वाण्पा कुल उसने अपने पति स्वर को सब वृत्तांत है लेकिन गप्त जी के राम दोनों को समेट कर सुनाया और कहा कि जब मैं अपने पुत्र के उच्छिन्न चले हैं। सिर को गोद में लेकर रो रही थी, तब शत्र ने जैन रामायनों का रूप भी भिन्न है और स्वर बलात् मेरा आलिंगन किया और मेरी यह दुरवस्था भी। विमल सूरि की एक अलग परंपरा है। उनके कर दी है। खरने उसके भाई रावण के पास पर महाभारत-वन पर्व । भेजा और स्वयं चौदह सहस्र भटों को लेकर राम - पउमचरियों के अनुसार कथा-सूत्र इस को कुटी पर माक्रमण कर दिया। दिशाए सेना के प्रकार है:- .... कलरव से भर गयीं। राम ने पहले उन्हें हंस समझा शरत ऋतु थी । बन-विचरण को निकलते ही और नीचे उतरने पर देव । लक्ष्मण ने युद्ध का लक्ष्मण को गंध युक्त पवन ने स्पर्श किया। वे उत्कंठा धुरा पकड़ा और राम से सिंहनाद की बात कहकर पूर्वक उस ओर मुड़ चले और क्रौंच रवा के तटस्थ वे तुमुल संग्राम में कूद पड़े। उसी समय पुष्पक वंशस्थ वन में पहुंचे । वहां चन्द्रनखा का पुत्र शंबूक विमान में स्थित रावण भी वहां पाया और सीता सर्यहास खड़ग के लिए तपस्या निरत था लक्ष्मण को देखकर संयम छोर बैठा । उसने प्रवलोकिनी ने सूर्यहास खड्ग को उठाकर जिज्ञासापूर्वक बांस के विद्या की सहायता से सिंहनाद किया। राम ने बीडे पर चला दिया और फूडलालंकृत मस्तक को सीता को जटायु के संरक्षण में छोड़ा और द्रतगति गिरते देखा। वे खडग ग्रहण कर राम के पास लोट से लक्ष्मण की सहायता को चल पड़े। रावण ने माये और उन्हें समस्त घटना से अवगत कराया। नीचे उतर कर सीता को उठाया और जटायु को उधर चन्द्रनखा ने अपने पुत्र का भू लुठित सिर चूर्ण-विपूर्ण कर लंका चला गया। मार्ग में सीता देखा तो वह मछित हो गयी और संज्ञा लौटने पर रोने-विलखने लगीं। रावण भी अपने अभिग्रह से करुण-दन करने लगी तथा वात्सल्य रति का विचुत नहीं हुमा और यह सोचकर संतुष्ट रहा कि परिचय देती हुई शत्र, को ढूढने लगी । उसकी समय पाकर सब ठीक हो जावेगा । सिंहनाद का दृष्टि राम-लक्ष्मण पर पड़ी। उसका क्रोध हवा रहस्य जानकर राम शीघ्र ही लौटे और कटीको होगया और कामने उसे प्रा दबाया। वरणेच्छा से सूना देखकर मूछित हो गये। पप चरित्र परमउसने कन्या का रूप धारण किया और पुन्नाग परियं का छायानुवाद है। 'स्वयंभ के पउमचरित वृक्ष के नीचे बैठकर मांसू बहाने लगी। सीता से में अपेक्षाकृत काव्य सौंदर्य है । लक्ष्मण 'मत्त गजों उसने कहा कि मेरे मां-बाप मर चुके हैं और परि- के पकड़ने में दत्तचित्त हैं कि एकाएक सुरभित जनों ने मुझको निकाल दिया है, प्राण-त्याग के पूर्व पवन उन्हें वंशस्थल की ओर ले जाता है। शक मेरी वरसेच्छा शेष है, अगर अाप अनुगृहीत कर वध की प्रकांड घटना से लक्ष्मण संतप्त होते है १. पउमचरियं-४३-४४ वां सर्ग -

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238