Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 198
________________ देना ।" अलबरूनी ने भी ब्राह्मणों के कुछ इसी प्रकार के कार्यों का निर्देश किया है। वह लिखता हैं कि ब्राह्मण के संपूर्ण जीवन में पुण्य के कार्य दान देना है। वह निरन्तर पढ़े, यज्ञ करे २ तथा वेद को पढ़ाए 13 शुक्र का यह विकल्प है कि ब्राह्मण दांत ( जितेन्द्रिय ), कुलीन, मध्यस्थ ( समबुद्धि), मनुद्वेगकारी (कोमल वचन) घटल, परलोक से भीरु ( डरनेवाला), धार्मिक, उद्योगो मौर क्रोधरहित हो । हेमचन्द्र ने ब्रह्मतेज उन्हीं ब्राह्मणों में वर्तमान बताया है, जिनमें आध्यात्मिक बल है । ५ प्रतः यह निर्विधादरूप से कहा जा सकता है कि समाज में ब्राह्मरणों से सद्माचार सद्व्यवहार, सवृत्ति और सद्भाव से निवास करने की अपेक्षा की जाती थी । “सभाशृंगार" नामक ग्रंथ में ब्राह्मणों के लिए यह निर्देश किया गया है कि जो धोती और उत्तरीय धारण करे, सिर भद्र रखे तथा शिखा फहराए, भाल पर तिलक लगाए, गायत्री मंत्र का जप करे, दिन में तीन बार संध्या करे, प्रातः स्नान करे, वेद पढ़े, वेदान्त का ज्ञाता हो, सिद्धांत पर चर्चा करें, देव, गुरु, ऋषि और मित्र का तर्पण करे, वही नैष्ठिक ब्राह्मण १. प्रध्यापनमध्ययनं यजन याजनं तथा । २. ३. ४. ५. ६. आचार्य हेमचन्द्र की दृष्टि में भारतीय समाज ७. ८. है । ६ इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि उपरिलिखित निर्देशों के विपरीत चलने वाला प्रकृततः ब्राह्मणों की श्रेणी में नहीं श्राता था । ऐसा लगता है कि हेमचन्द्र के काल में ब्राह्मण अपने स्वाभाविक कत्तव्यों से विमुख होने लगे थे तथा विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में रुचि लेने लगे इसी लिए हेंमचन्द्र ने उन्हें केवल नाम का ब्राह्मण कहा है और उनके ब्राह्मणेतर कत्तव्यों की भर्त्सना की है। हेमचन्द्र स्वयं कहते हैं कि कलिंग में ब्राह्मणों को प्रतिष्ठा नहीं है । ७ इस प्रतिष्ठा का कारण अपने कर्तव्यों से च्युत होना तो है ही, साथ ही उनकी वैमनस्यता भी है । वे एक दूसरे धर्मावलंबियों के प्रति द्वेष-भाव रखते थे, क्योंकि हेमचन्द्र ने 'ब्राह्मणश्रमणम्' का उदाहरण देकर उनके मनोमालिन्य का संकेत किया है । ८ ब्राह्मणों को प्राचीनकाल से कुछ विशेषाधिकार भी प्राप्त थे, जो राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और बौद्धिक सभी प्रकार के थे। इस युग में भी ब्राह्मणों को ऐसी सुविधाएं प्राप्त थीं, जिससे वे समाज में अन्य वर्गों की अपेक्षा श्रेष्ठ समझे जाते दानं प्रतिग्रहचैव ब्राह्मणानामकल्पयत || मनु० १.८८ । तहकीकमा लिहिद, पृ० २६१ । वही, पृ० २७० । दांतं कुलीनं मध्यस्थम न गकारस्थिरम् । परत्र भीरु धर्मिष्ठामुक्तक्रोधवजितम् ।। शुक्र० ४.४३६ ॥ सूत्र - 'ब्रम्हावचंसम' - सिद्धहेमशब्दानुशासन, ७ । ३ । ८३ । उत्तरासंग धोती, सऊतरिक जनोइ, हाथि प्रबीती, १४३ fee भद्रियजं, सिखा फरहरती, तिलकु बधारियउ, गात्री साय, त्रिकाल संध्याराधनु, प्रभात स्नानु नित्यदातु । वेद पढ़ाई, वेदान्त जागर, सिद्धांत बखाइ, देव तर्पणु, गुरु तर्परंतु ऋषि तर्पण, पितृ तर्पणु, इस उन ष्टिकु ब्राह्म । 'सभावङ्गार' शब्दानुशासन का० ना० प्र० सभा, पृ० १४८ ॥ "न कलिगेषु ब्राह्मण महतमम् सिद्धहेमशब्दानुशासन, ५०२१११ । "निरयवैरस्य", वही, ३। १। १४१ । A

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