Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 208
________________ ५वीं शती के प्राकृत ग्रन्थ वसुदेव हिन्डो की राम कथा . (सीता रावण की पुत्री थी, इसका सबसे प्राचीन प्रमाण ) • अगर चन्द नाहटा भारतीय जन-मानस में वैसे तो भनेक देवी-देव- मतभेद है। श्री बुल्के ने उन मत भेदों को ४ तामों के प्रति मादर की भावना दिखाई देती विभागों में विभक्त किया है। है, पर उनमें से सबसे अधिक प्रादर लोक जीवन में १-"जनकात्माजा-महाभारत, हरिवंश, पउमजिन महापुरुषों के प्रति दिखाई देता है वे हैं, राम चरिय, मादिरामायण । पौर कृष्ण । भारतीय जनता का सबसे पहला, मुकाव २-भूमिजा-वाल्मीकि रामायण तथा भधितो प्रकृति देवता सूर्य, अग्नि प्रादि के प्रति दिखाई . कांश राम कथाएं। देता है-फिर इन्द्र प्रादि देवों के प्रति । अन्त में (२) दशरथ तथा मनका की मानसी पुत्री%B मनुष्यों को ही उनके विशिष्ठ गुणों के कारण बाल्मीकि रामायण के उत्तरीय पाठ अवतार मानते हुये उनकी पूजा करने लगे । राम (३) देववती तथा लक्ष्मी का अवतार । पौर कृष्ण तथा महावीर और बुद्ध ऐसे ही महापुरुष ३-सीता मोर लंका-रावणात्मजा-(१) गुणपे जिनकी लोक मानस पर गहरी छाप है । राम का भद्र कृत उत्तर पुराण, महाभागवत पुराण परित्र वास्तव में ही एक प्रादर्श रहा है भतः उनके (२) काश्मीरी रामायण पाश्चात्य वृतान्त चरित का जितना भी प्रचार हो, अच्छा ही है। नं. १६ (३) तिब्बती तथा खोतानी रामायण राम कथा को लेकर देश और विदेशों में इतने (४) सेरत काण्ड, सेरी राम का पातानी पाठ मधिक साहित्य का निर्माण हुवा है कि उन सवकी (५) रामकियेन (रे प्राम केर ?) । पूरी जानकारी प्राप्त कर लेना बहुत कठिन है। (प्रा) पदमा-दशावतार चरित्र (११ वीं ग. रेबरेंड फादर कामिल बुल्के ने इस सम्बन्ध में जो श. ई.) (२) गोविन्द राज का वाल्मीकि रामायण महत्वपूर्ण खोज की है। उससे-'राम कथा संबंध साहित्य की यद्यपि कुछ झांको मिल जाती है तथापि (इ) रक्तजा-अद्भुत रामायण (१५ वीं अभी बहुत से ऐसे ग्रंप हैं, जिनकी मोर उनका श. ई.) (२) सिंहल द्वीप की राम कथा एवं अन्य ध्यान ही नहीं गया। ऐसे ही एक महत्वपूर्ण प्राकृत विविध भारतीय वृत्तान्त । भाषा के जैन कथा ग्रंथ 'वसुदेव हिन्डी' में वर्णित (ई) अग्निजा-(१) प्रानन्द रामायण (१५ राम कथा को यहां प्रकाशित किया जा रहा है। वीं श. ई.) (२) पाश्चात्य वृत्तान्त नं. १६ (३) पहप्रय संघदास गणि वाचक ने ५ वीं शताब्दी में पाश्चात्य वृत्तान्त नं.१। बनाया था। वैसे इसमें श्री कृष्ण के पिता वसुदेव की (४) दशरथात्मजा-(१) दशरथ जातक (२) भ्रमण वृत्तान्तों का वर्णन प्रधान है पर अन्य जावा के राम कलिंग, मलय के सेरी राम तथा भनेक कथाएं व प्रसंग भी इसमें वरिणत हैं। हिकायत महाराज रावण ।" राम कथा में सीताजी का प्रमुख स्थान है। पाठकों को यद्यपि यह विचित्र सा लगेगा पर उनकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में काफी विवाद या किन्तु यह एक तभ्य सा लगता है कि सीता वस्तुतः

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