Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 221
________________ १६६ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति प्रन्थ पोल्हा हुए । इनकी माता का नाम महादेवी स्पष्ट भान होता है । उनका परिचय भनेकान्त में था। प्रपम धर्मपस्नी का नाम कोल्हाही पोर दिया गया है । हस्तिनापुर के विशाल मन्दिर का दूसरी का नाम प्रासाही था। पासाही से निर्माण भी उन जैसे साहसी पौर भद्र परिणामी विभवनपाल और रणमल नाम के पुत्र उत्पन्न नररत्नों का ही कार्य था। इतना सब धार्मिक हए थे। थोल्हा के पांच भाई और भी थे। जो कार्य करने के पश्चात् भी उन्होंने अपना ना खिउसी, होल , दिवसी, मल्लिदास और कुन्दादास कहीं अंकित नहीं कराया। उनके द्वारा निर्मित नाम से प्रसिद्ध थे। ये सभी जैन धर्म के उपासक धार्मिक स्थान उनकी उदारता एवं निस्पृहता के पौर श्रावकोचित कर्तव्य का पालन करते थे। द्योतक हैं। ___ लखमदेव के पितामह साहु होल ने जिन बिम्ब ___लाला जंवू प्रसादजी सहारनपुर, बड़ी ही भद्र प्रतिष्ठा कराई थी। उन्ही के वंशज थील्हा के प्रकृति के मानव थे। उनकी धार्मिक परिणति प्रसंशा अनुरोध से कवि तेजपाल ने उक्त 'संभवनाथ चरित' के योग्य थी। उन्होंने मन्दिर निर्माण के साथ की रचना संवत १५०० के पास-पास की थी। अच्छा शास्त्र भंडार भी बनाया था, धवलादि ग्रंथों रोहतक निवासी चौधरी देवराज जिनको की प्रतियां दस हजार रुपया में खरीद की थी, जाति अग्रवाल और गोत्र सिंगल ( संगल) था और तत्वार्थ राजवातिक की टोका पंडित पन्नालालजी पिता का नाम साह महणा था, सं० १५७६ चैत्र न्यायदिवाकर से बनवाई थी और दस हजार शुक्ला पंचमी शनिवार के दिन कृतिका नक्षत्र के रुपया उपहार स्वरूप भेट किया था। उनके पुत्र शुभयोग में पार्श्वनाथ के मन्दिर में कवि मारिणक्य प्रद्य म्नकूमार ने भी पं० माणिकचन्दजी न्यायाचार्य राज से अमरसेन चरित्र का निर्माण कराया था। से श्लोकवातिक की टीका वनवाई, और उसके लिये कवि रइधू ने तो अग्रवाल वंशो श्रावकों की यथेष्ट द्रव्य खर्च किया। वर्तमान में श्रावक शिरोप्रेरणा से अनेक ग्रंथों की रचना की, तथा प्रति- मणि साह शांतिप्रसादजी का सांस्कृतिक कार्य भी ष्ठादि कार्य सम्पन्न किये जिनका उनके द्वारा प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय है । मंदिरों का जीर्णोरचित ग्रंथ प्रशस्तियों में विस्तृत परिचय दिया द्वार कार्य, और संस्थाओं के संचालन में अर्थ का हमा है। इनके अतिरिक्त इस सम्बन्ध में विशेष सहयोग, साधर्मी वात्सल्य सहयोग प्रादि कार्य उनकी अनुसंधान किया जाय तो एक बड़े प्रथ का निर्माण उदारवृत्ति के परिचायक हैं। दिल्ली, पानीपत, किया जा सकता है। दिल्ली के राजा हरसुखराय सुनपत, करनाल, हिसार, हांसी, सहारनपुर, मेरठ, पौर सुगनचन्द ने जो शाही खजांची, राज्यमान्य मुजफ्फरनगर, प्रादि भनेक शहरों और कस्बों मावि और समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, हिसार के में निवास करने वाले अधिकांश अग्रवाल ही हैं उन निवासी थे.उस समय जैनधर्म और जनसमाज की सब की धार्मिक परिणति मादि कार्य उल्लेखनीय हैं। प्रतिष्ठाके । अनेक महनीय कार्य किये । जिनमन्दिरों इस तरह अग्रवालों का जैनधर्म के प्रचार तथा प्रसार का निर्माण कराया और परोपकार प्रापि के महत्व में प्रच्छा योगदान रहा है। उसका कुछ प्राभास पूर्ण कार्य किये । २ जिनसे उनकी महत्ता का ऊपर के कुछ परिचय पर से मिल सकता है। १. देखो, जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह दूसरे भाग को प्रस्तावना २. अनेकान्तवर्ष १५ किरण १ ३. अनेकान्तवर्ष १३ किरण

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