Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 212
________________ बसुदेव की हिन्दी राम कथा १५० भरत को प्राज्ञा दी, 'यदि मेरा तुझ पर अधिकार गये । उन्होंने युद्ध में शस्त्रबल और बाहुबल से है और मैं तुम्हारे से बड़ा हूँ तो तुम्हें मेरी माज्ञा खर-दूषण का नाश कर दिया। का पालन करना है और माता को फटकारना नहीं है।"पाखों में मांसू लिये भरत हाथ जोड़कर प्रार्थना ____ उसके बाद पुत्र वघ से रुष्ट सूर्पणखा रावण के पास गई। उसे अपने नाक-कान कटने और पूत्रों करने लगा-'मार्य ! प्रजापालन के कार्य के लिये यदि शिष्य की तरह मुझे नियुक्त किया गया है तो के मरण का हाल सुनाया और कहने लगी-देव ! मुझे पादुकाएं देने की कृपा करें।" राम ने 'ठीक वह मानव को स्त्री है। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि संपूर्ण पुवतियों के रूप का मंथन करके लोगों है' कह कर वह बात मान ली-पादुकाएं दे दी। के लोचनों को प्रानंददायी उस नारी का निर्माण भरत पुनः प्रयोध्या चला गया। किया गया है । वह तुम्हारे अंतःपुर के योग्य है। सीता हरण की पूर्व भूमिका___इस तरह सीता लक्ष्मण सहित राम तपस्वियों सीता हरणके माश्रम देखते तथा दक्षिण दिशा को अवलोकन इस प्रकार सीता के रूप श्रवण से उन्मत हए करते-करते एक निर्जन स्थान पर पहुंचे, वहां एकांत रावण ने अपने प्रमात्य मारीच को सूचना दी, 'तू वन प्रदेश में वे सीता के साथ रहे । कमल के प्राश्रम में जा वहाँ रत्नजड़ित मृग का रूप बना कर समान नयन वाले और देवकुमार सदृश राम को तापसवेशधारी योद्धाओं को लुभा जिससे मेरा काम देखकर कामवश हुई रावण की बहन सूर्पणखा हो जाय ।" तदनंतर मारीच रत्नजड़ित मृग का रूप प्राकर कहने लगी, "देव ! मुझे स्वीकार करें।" धारण कर घूमने लगा। उसे देख कर सीता ने राम तब राम ने कहा, 'ऐसा न कह, तपोवन में रहता से कहा-'मार्य पुत्र ! अपूर्व रूप वाले इस मृग हुप्रा मै पराई स्त्री का सेवन नहीं करता।" फिर शावक को पकड़िये, वह मेरे लिये खिलौना होगा। जनकदुलारी सीता ने कहा,-"परपुरुष की जबर- फिर राम 'ठीक है, ऐसा ही होगा" यह कह कर दस्ती प्रार्थना कर रही है, “इसलिये तू मर्यादा का धनुष हाथ में लेकर उसके पीछे २ जाने लगे। वह उल्लंघन करने वाली निर्लज्ज है ।" तब कुपित हो मृग भी धीरे २ प्रारम्भ करके फिर जोर से चलने भीषण रूप धारण कर वह सोता को डराने लगी लगा । 'तू कहाँ जायगा ?' यों कहते २ राम भी 'तुम्हारे सतीत्व का मै नाश कर दूंगी; तू मुझे नहीं उसके पीछे दौड़ने लगे । इस प्रकार दूर तक जाने के पहचानती ? फिर राम ने 'यह स्त्री होने के कारण बाद राम ने जान लिया कि 'जो वेग में मुझे भी प्रवध्य है' यह विचार कर उसके नाक कान काट जोत रहा है वह मृग नहीं हो सकता, यह तो कोई लिये । सूर्पणखा खरदूषण के पास गई । निर- मानवी है" यह विचार कर उन्होंने बाण फेंका तब पराधिनी को दशरथ के पुत्र राम ने इस प्रकार मारीच ने मरते २ विचारा कि 'स्वामी का काम कर दुखी किया है यह जान वे कहने लगे, "माता! दूं।" उसने 'हे लक्ष्मण ! मुझे बचानो।' इस तरह दखी मत हो हमारे बाण से विद्ध हुए राम और से जोर की चीख मारी । यह सुनकर सीता ने लक्ष्मण का रूधिर मात्र गिों को पिलायेंगे। इतना लक्ष्मण से कहा 'जल्दी जामो, भयभीत स्वामी ने कहकर वे राम के पास पहुंचे । सूर्पणखा के नाक- ही यह चीख मारी है। निश्चय ही शत्र. सेना कान काटे जाने की बात की। इन्होंने राम से होगी।" तब लक्ष्मण ने कहा, “प्राण भय नहीं कहा-'भट, युद्ध के लिये तैयार हो । 'तब यम है तुम कह रही हो इसलिये ही जारहा हूं।" फिर वैषमण के समान पराक्रमी राम और लक्ष्मण वह भी हाथ में धनुष लेकर जिस मार्ग से राम गये दोनों भाई धनुष पर प्रत्यंचा चढा कर खड़े हो ये उसी मार्ग पर तेजी से भागे।

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