Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 211
________________ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रंथ ; डालो' इस प्रकार कहती हुई वह शव सेना का नाश सत्यवादी हो तो ये ही वरदो दूसरा कुछ भी मुझे करने लगी। फिर अनुराग सहित अपना पराक्रम नहीं चाहिये जो पापकी इच्छा हो वह करो ।' तब . दिखलाते हुए योद्धा युद्ध करने लगे । योद्धानों को उसे बहुत ही भला बुरा कहकर राजा ने राम को वह प्रेमोपहार सरोपाव देने लगी । इस प्रकार बुलाया और प्रश्र बिरलित कंठ से बोले 'कैकेयी देवी द्वारा शत्र सैन्य को पराजित करने पर मुक्त पूर्व में मुझ से प्राप्त दो वर मांग रही है ।' राज्य हए दशरथ कहने लगे, 'देवी ! तुम्हारा काम महान भरत को मिले और तू वन में जाय । इस लिए पुरुष के जैसा है; इसलिये वर मांगो।' वह बोली, तू ऐसा कर जिससे में झूठा न बनू।" राम ने मेरा दूसरा वर भी अभी रहने दीजिये, काम पड़ने नतमस्तक हो वह स्वीकार कर लिया। फिर सीता पर ले लूगी। मौर लक्ष्मण सहित राम बोर वेशधारी होकर रामराज्याभिषेक की तैयारी का वर्णन लोगों के मन, नयन प्रौर मुख कमल को म्लान करते हुए, कमलवन को संकुचित करता हुआ जिस और बनवास : तरह सूर्य प्रस्ताचल को जाता है, उस प्रकार प्रजा : बहुत वर्ष बीत जाने के बाद तथा पुत्रों के युवा को विलखते हुए छोड़ राम बन को रवाना हो गये। : हो जाने पर वृद्ध दशरथ ने राम के राज्याभिषेक की प्राज्ञा दी । कुबजा मंथरा ने यह खबर कैकेयी को हा पुत्र ! हा श्रुत निधि ! हा सुकुमार ! हा प्रदु.खोचित! मुझ मंदभागी के लिए भकारण ही दी । प्रसन्न हो उसने मंथरा को प्रीतिसूचक प्राभरण देश निष्काषित ! तू बन में किस प्रकार समय प्राभरण दिया । मंथरा ने देवी कैकेयी से कहा, दुखदायिनी वेला से तुम प्रसन्न हो रही हो, मै तो बितायेगा ? इस प्रकार विलाप करते हुए दशरथ अपमान सागर में डूब रही है, यह त जानती मृत्यु का प्राप्त हुए। नहीं । कौशल्या मोर राम की तुम्हें चिरकाल तक भरत को राम पादुकाओं की प्राप्तिसेवा करनी पड़ेगी; उनका दिया हुआ खाना पड़ेगा। पीछे से भरत अपने मामा के देश से पाया। इसलिये मोह त्याग राजा द्वारा तुम्हें पहले से जो सच्ची घटना सुनकर उसने माता को फटकारा और दो वर प्राप्त हैं; उनसे भरल का अभिषेक और अपने सगे संबन्धियों सहित वह राम के पास पहुंचा । .राम का वनवास मांग लें।" मंथरा के वचन मान उसने राम से पितृमरण का समाचार सुनाया। कैकेयी कूपितानना-कुपित मुह वाली बनकर कोप राम द्वारा उत्तर क्रिया कर लेने के बाद उन्हें भवन में चली गई। दशरथ ने यह सुना तो वह प्राशामों से भरे मुह वाली भरत की मां कैकेयी ने वह उसे मनाने गया। परन्तु उसने कोप नहीं कहा-"पूत्र, तुमने पिता की प्राज्ञा का पालन सोडा । दशरथ ने उसे कहा, 'बोल. क्या करूं, किया । अब तुम्हें अपयश के कर्दम से मेरा उदार कैकेयी ने कहा, 'तुमने २ वर दिये थे, यदि सत्यवादी तथा कुल क्रमागत राज्य लक्ष्मी और भाइयों का हो तो मुझे दो।' राजा ने कहा,-'बोल. क्या पालन करना ही शोभा देगा।" राम ने कहा १?,' तब संतोष से विकसित वदन हो वह कहने "माता ! तुम्हारा वचन टाला नहीं जा सकता: लगो-एक वर से भरत राजा बने और दूसरे वर परन्तु उसके उल्लंघन करने का कारण सुनोसे राम १२ वर्ष तक बन में रहे।" तब दुःखी हो राजा सत्यप्रतिश होकर ही प्रजापालन में समर्थ हो राजा ने कहा, देवी ! ऐसा बुरा हट मत कर ।' सकता है; सत्य से भ्रष्ट हो पाय तो अपनी पत्ति बड़ा पुत्र (राम) गुणों का भागार है; यह राम ही के पालन में भी प्रयोग्य होता है। पिता के वचन पृथ्वी का पालन कर सकता है प्रतः इसके अतिरिक्त पालनार्थ ही मैं ने वनवास स्वीकार किया दूसरा जो कहे वह देहूँ । 'कैकेई बोली,'-यदि मुझे वापिस लौटने का प्राग्रह मत करो।" राम ने

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