Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 196
________________ आचार्य हेमचन्द्र की दृष्टि में भारतीय समाज डा. जयशंकर मिश्र एम. ए. पी. एच. डी. कलिकाल सर्वज्ञ जैन प्राचार्य हेमचन्द्र (जन्म वि० संग्रह प्रादि उनके प्रमुख अन्य हैं। इन ग्रन्थों में " सं० ११५, मृत्यु वि० सं० १२२६) अपने युग इन्होंने साहित्य के विभिन्न शाखाओं-प्रशाखानों पर के प्रकांड पंडित और अप्रतिम विद्वान् थे । १२ वी नए सिरे से विचार तो किया ही है, साथ ही तत्का. सदी के भारतीय साहित्य और संस्कृति के वे लीन भारतीय समाज पर भी अपनी दृष्टि से यत्र-तत्र एकमात्र प्रतिनिधि थे । साहित्य और भाषाशारत्र प्रकाश डाला है, जो तत्कालीन समाज-चित्रण की के विभिन्न विषयों के अतिरिक्त तर्फशास्त्र मीमांसा नवीन उपलब्धि है । माज तक हेमचन्द्र के भारतीय मौर इतिहास-संस्कृति के भी समान विचारक थे। समाज-संबंधी विवरण उपेक्षित से रहे हैं। यहां तक चौलुक्य नरेश जयसिंह, सिद्धराज पोर कुमारपाल कि, डा० ए० के० मजुमदार ने अपने 'चौलुक्याज की राज्यसभा के ये अग्रणी और सर्वश्रेष्ठ साहित्यक प्राव गुजरात' ग्रंथ में, इस संबंध में, कुछ भी प्रकाश पे। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भादि भाषानों नहीं डाला है। प्रस्तुत निबन्ध में तत्संबंधी उल्लेखों पर इनका समान अधिकार था अतः इन्होंने विभिन्न का विश्लेषण और मूल्यांकन किया जा रहा है। विषयों पर विभिन्न भाषामों में रचना की । प्राकृत वर्ण-व्यवस्था द्वधाश्रय भोर कुमारपालचरित, सिद्धहेमशब्दानुशान, छन्दोनुशासन, लिंगानुशासन, उरणादिगणसूत्र, देशी. भारतीय समाज में वर्णव्यवस्था का अस्तित्व नाममाला, अभिधानचिन्तामणि, त्रिषष्टिशलाका- प्राचीनतम है। ये वर्ण चार पे, ब्राह्मण, क्षत्रिय, पुरुषचरित, योगशास्त्र, प्रमाणमीमांसा, अनेकार्थ वैश्य और शूद्र ।' प्राचार्य हेमचन्द्र के समय में भी नोट-पूर्वमध्ययुगीन भारतीय समाज की सांस्कृतिक अवस्था का अनेक भारतीय प्रौर विदेशी भाषामों में लिखे गए तत्कालीन साहित्यिक ग्रंथों और विदेशी यात्रियों के विवरणों के मूल का अध्ययन कर-प्रोफेसर डा० बुद्ध प्रकाश (अध्यक्ष, इतिहास विभाग, प्राचीन भारतीय इतिहास. संस्कृति मोर पुरातत्व विभाग, डायरेक्टर इंस्टीट्यूट प्राव इंडिक स्टडीज तथा डीन फैकल्टी अब पार्टस कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, पंजाब) ने सर्व प्रथम सम्यकरूपेण विश्लेषण प्रस्तुत किया है. जो पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से रिसर्च बुलेटिन के स्वतन्त्र पुस्तक रूप में Some Aspect of Indian Cul in the Eve of muslim Invasions "शीर्षक से प्रकाशित है। उन्होंने अनेक ऐसे ग्रंथों का उपयोग किया है जिन्हें इतिहासकारों ने अबतक उपेक्षित रखा था। उन ग्रंथों के उपयोग से विद्वान इतिहासकार ने तत्कालीन समाज पर नवीन प्रकाश डाला है जिससे तयुगीन समाज पर विचार करने की प्रेरणा मिलती है तथा तत्त इतिहास के, एक बहुत बड़े प्रभाव की पूर्ति होती है। प्रस्तुत निबन्ध में उक्त पुस्तक से अनेक स्थलों पर सहायता ली गई है। १. शतपथ ब्राह्मण, ५, ५, ४६, निरुक्त ३८, "अपण्डक जातक" भदंत पानन्द कौशल्यायन, प्रथम खंड, पृ० १३६, १६४१ पाणिनिः ब्राह्मण, क्षत्रियविटशूद्राः वनामानुपूर्वेण पूर्वनिपातः २।२।३४ वा० )

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