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करता क्योंकि उसे पतिव्रता के स्पर्श से उसकी प्रकाश गामिनी विद्या के नष्ट हो जाने का मय था ।"
बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ
पुष्पदंत के महापुराण का प्रणयन भी इसी भाधार पर हुआ है लेकिन उसमें सरसता धौर रोचकता है। इसमें मारीच मंत्री कनक-मृग का रूप धारण करता है । उस समय उसका मानसिक मंचन हिन्दू रामायणों के अनुरूप है। उत्तरपुराण में राम कनक-मृग को माया-मृग समझकर उसका अनुसरण करते हैं और महापुराण में उसका कारण सीता का मनःप्रसादन बताया गया है। उत्तरपुराण में रावण मृग को लेकर नहीं जाता। यहां उसके हाथ में मृत मृग है । प्राश्चर्य-चूड़ामरिण में राम और लक्ष्मण दोनों ही मृग के पीछे चले जाते हैं। रावण प्रोर उसका सारथी उन दोनों का रूप धारण कर सीता के पास पहुंचते हैं। रथ को दिखलाकर लक्ष्मण ( सारथी) राम (रावण) से
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कहते हैं कि भरत का राज्य संकट में है। उनकी सहायतार्थ भापको लाने हेतु तपस्वियों ने यह रच भेजा है। अनंतर तीनों रथ पर चढ़कर चले जाते हैं। उधर पूर्पणखा सीता के देश में राम के साथ बातचीत कर रही है तथा मारीच राम के वेश में लक्ष्मण के साथ |
निष्कर्ष - उत्तरपुराण का सीताहरण प्रकरण वात्सायन कामसूत्र के व्यावहारिक रूप पर खड़ा किया गया है। इससे जीवन का व्यावहारिक रूप भी प्रत्यक्ष हुआ है और अहिंसा धर्म की प्रतिष्ठा भी रही है। समग्र प्रकरण राजकीय संदर्भ से प्राच्छादित है । इसके संचार में शौर्य और सौंदर्य की मूल वृत्तियां सजग दिखलायी पड़ती हैं। सर्वत्र विद्यानों का अद्भुत रंग है लेकिन रसाभास नहीं है । अतः उत्तरपुराण की प्रबंधयोजना प्रषिक नाटकीय और व्यावहारिक है। इसका वातावरण भी सर्वत्र उदात्त है और काभ्यमय है ।
१. उत्तर पुराण (ज्ञानपीठ संस्करण) पृ० २८५ - २१३ २. महापुराण- ७१-७२ परिच्छेद
मनुष्य जब मरने पर उतारू हो जाता है तब क्या वह इस बात
का विचार करने बैठता है कि विष कड़वा है या मीठा ?
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आदमी का मन आश्चर्यपूर्ण है। किस बात
से
कर लेगा सो कुछ कहा नहीं जा सकता।
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वह क्या तय