Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 192
________________ भारतीय साहित्य में सीताहरण प्रसंग का प्रभाव है लेकिन यज्ञ का मान है। परस्त्रीरमण सामाजिक अनुशासनविहीनता का कारण समझा गया है। साहित्यिक दृष्टि से प्रादि रामायण की कथा विखरी बिखरी है । उसमें वर्णन प्रियता का प्राग्रह है | चरित्र की दृष्टि से लक्ष्मण अधिक दूरदर्शी हैं और राम अधिक पराक्रमी । प्रागे कथा में संगठन माया है और कुतूहल की उत्पत्ति हुई है। राम का चरित्र प्राध्यात्मिक दृष्टिकोण से चित्रित किया गया है। प्राध्यात्मिक चेतना उभरी है और व्यक्ति को प्रधानता मिली है। जन सामान्य की कर्मचेतना भाव मय हो गई है। कर्म का स्थान भक्ति ने ले लिया है। रामचरित मानस में कथा कुछ पर सिमटी है । उसमें वह प्रसंग भी नहीं है। जहां मारीच मृग रूप में राम पर आक्रमण करता है। पूर्व गाला अपने प्रविगलित कौमार्य की दुहाई देकर विवाह का धाग्रह करती है और दोनों भाईयों के बीच भंबर की नाव बन जाती है। मानसकार ने उसको राजनय में ही नहीं, धर्मनय में भी निष्णात बताया है (यद्यपि यह पात्र दोष है ) । इधर खरादि भी राम की रूप माधुरी से अभिभूत होते हैं और रावण भी 'प्रभृ सर-तीरथ' ऊपर में प्रारण छोड़ना चाहता है । वह सीता पर क्रुद्ध होकर भी चरण वंदन में सुख मानता है । मारीच ने राम के कोच को मुक्ति प्रदायक और भक्ति को वशकरी बताया है। राम भी मृग का पीछा देव कार्य की प्रेरणा से करते हैं । वे नरलीला के लिए सीता को प्रग्नि प्रवेश का प्रदेश भी देते हैं । लक्ष्मण सीता को 'वन विसि देव' सभी को सौंप जाते हैं और एक रेखा भी बना जाते हैं। राम प्रसुर को भी परमपद देते हैं। उन्होंने खर की सेना में भी एक कौतुक किया है कि सब की दृष्टि फेर दी है। वे एक दूसरे को राम समझते हैं, बड़ते हैं पौर मरते हैं ।' १. मानस प्ररण्य काण्ड दो० १७-२६ १३० पंचवटी और सात में बचा भी बदली है पौर स्वर भी बदला है। पंचवटी की गथा सामान्य हिन्दू गृहस्थ के संदर्भ में प्रारंभ होती है । उसका ढंग प्रत्यन्त नाटकीय है और विषय संक्रातिकालीन जीवन मूल्यों का संघर्ष लक्ष्मण नैसगिक धोर नागरिक जीवन के विश्लेषण की उधेड़बुन में लगे दिखलायी पड़ते हैं । शूर्पणखा नगर की कृत्रिम सभ्यता के सभी गुण दोषों के साथ उनके सामने प्रकट होती है। अतः भारतीय संस्कृति के मूल्यों को लेकर खींचातानी प्रारम्भ हो जाती है धीरे-धीरे महार्य सभ्यता का भेद खुलने लगता है। उसमें समायोजन का सबसे अधिक प्रभाव है। साकेत में पार्थिव रंग कुछ हलका है। सर से युद्ध करते समय राम अपने युद्ध कौशल के कारण असंख्य रूपों में दिखलायी पड़ते हैं। मायावी मृग का रहस्य भी चलते ढंग से संकेतित कर दिया गया है। रामादि के विरुद्ध शूर्पणखा की एक आपत्ति यह भी है कि वे उसको पतित कहते हैं। सीता भी मृग की आवाज सुनकर लक्ष्मण के क्षात्र धर्म को जागृत करने के लिए स्वयं सहायतार्थ साथ जाने को तैयार हो जाती है । सारलदास के महाभारत के अनुसार भी सीता को एक सखी की इच्छा है और वे चाहती हैं कि लक्ष्मरण शूर्पणखा से विवाह करलें, लेकिन लक्ष्मण इसको स्वीकार नहीं करते । 3 निष्कर्ष: तुलसी ने रामकथा को भावस्तर से उठाकर एक ऊंचे प्राध्यात्मिक साधार पर टिका दिया है । कर्मसौंदर्य भावोद्वेलन का उपकारक मात्र है । मानस का स्वर भी पौराणिक है और सर्वत्र विदेहमुक्ति का प्राग्रह है। समूचे ग्रंथ में इस बात का धनुसंधान दृष्टिगोचर होता है कि श्रद्धा, बैर. ईर्ष्या और बालस्य से भगवद् स्मरण करने पर शिवत्व की उपलब्धि होती है। मानसकार ने व्यक्ति को प्रधानता प्रदान की है और जाति को उसके सीमंत में रख दिया है । सर्वत्र २. साकेत - सर्ग ११ ३. महाभारत वन पर्व

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