Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 187
________________ बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रन्थ १३२ प्रतिम दिनों में उसका राज्य से विश्वत होना " वर्णित है। मगर अमोघवर्ष जैन धर्म की धोर भाकृष्ट नहीं होता तो निसंदेह जिनसेनाचार्य उसकी प्रशंसा में सुन्दर पद नहीं लिखते । १७ । उसमें लिखा है कि उसके मागे गुप्त राजाओंों की कीर्ति भी फीकी पड़ गई थी। संजान के दानपत्र में भी इसी प्रकार का उल्लेख है।" उत्तर पुराण की प्रशस्ति में प्रमोघवर्ष के उत्तराधिकारी राजा कृष्ण II की प्रशंसा की है किन्तु यह निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि यह राजा जैन था अथवा नहीं। किन्तु इसका सामन्त लोकादित्य जो वनवास देश का राजा था अवदयमेव जैन था। इसकी राजधानी १० बँकापुर थी। यह जैन धर्म का बड़ा भक्त था। शिलालेखों और ताम्रपत्रों में भी गोविन्दराज और अमोघवर्ष का वर्णन मिलता है। गंगवंशी सामन्त चाकिराज को प्रार्थना पर शक सं० ७३५ में गोविन्दराज III ने जालमंगल नामक ग्राम यापतीय संघ को दिया था । यह लेख गोविन्दराज III के शासन काल का अन्तिम लेख है । उत्तरपुराण में वरित लोकादित्य के पिता शंकेय के कहने पर अमोघवर्ष मे जैन मंदिर के लिए भूमिदान में में दी थी ऐसा एक दानपत्र से प्रकट होता है। " महाकवि पुष्पदंत और सोमदेव उस युग के महान विद्वान थे। पुष्पदंत का एक नाम सह भी था। ये महामात्य भरत धौर उनके पुत्र नन के माथित रहे थे। ये दोनों राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज 111 के सम सामयिक थे। इसने कृष्णराज के लिये "तुडिगु" "बल्लभ नरेन्द्र" घोर "कणहराय" शब्द भी प्रयुक्त किये हैं । २२ तिरुक्कसुदन रम् के शिलालेख में कन्हरदेय शब्द इस राजा के लिये प्रयुक्त २३ किया गया हैं। यह राजा जब मेलपाटी के सैनिक शिविर में था तब सोमदेव ने यशस्तिलक चम्बू ग्रंथ को पूर्ण किया था। २४ इस पंथ की १६. लेकर राष्ट्रकूटाज एण्ड देवर टाइम्स १० ८९-९० १७. गुर्जर नरेन्द्र कीर्तेरन्तपतिता शशोकशुभ्रा या । म गुप्तंव गुप्त नृपतेः शकस्य मुशकायते कीर्तिः ॥१२ ॥ १८. हत्वा भ्रातरमेव राज्यमहरत् देवीं च दीनस्तथा । कोटिमलेखयत् किलकिलो दाता सगुप्तान्वयः येनात्माजि तनु स्वराज्यमसकृत वाहार्थ कः काकथा हस्तिस्योन्नति रास्ट्रकूट free दातेति कर्त्यामपि । ४८ । [E. I Vol 18 P.2351 १६. उत्तर पुराण की प्रशस्ति श्लोक २६-२७ २०. उत्तर पुराण की प्रशस्ति श्लोक २६ औौर ३० २१. जैन लेख संग्रह भाग ३ की भूमिका पृ० १५ से ६७ २२. सिरि कम्हरा करम लगि हिय धसि जलवाहिणि दुर्गा परि । आदि पुराण भाग ३ की भूमिका पृ० १६ २३. E. I. Vol 3 Page 282 एवं साउथ इंडियन इंसम्पिसन भाग १०७६ २४. "पांड्य सिंहन चोल पेरम प्रभृतीन्महीपतिन्त्रसाध्य मेलपाटी प्रवर्द्धमान राज्यप्रभावे श्री कृष्णराज देवे"...एवं ८८ शक के दानपत्र में "तं दरिण दिएण धरण करणयप यद मदिपरिम मंतु मेला डियायरु" उल्लेखित है ।

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