Book Title: Babu Chottelal Jain Smruti Granth
Author(s): A N Upadhye, Others
Publisher: Babu Chottelal Jain Abhinandan Samiti

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Page 178
________________ पंचकल्याक तिथियों और नक्षत्र खाता है। त्रिलोक प्रशप्ति जैसे प्राचीन ग्रंथ का इस प्रकार का पूर्वापर विरोध कथन अवश्य ही चिन्तनीय है। इसी तरह हरिवंश पुराण में उल्लिखित तिथिनक्षत्र भी कहीं कहीं धनमेल रहते हैं। जिनका विवरण सेखवृद्धि के भय से यहां छोड़ा जाता है। हरिवंशपुराण में जन्म और मोक्ष इन दो कल्याणकों के ही नक्षत्र दिये हैं। शेष कल्याणकों के नक्षत्र शायद इसलिये नहीं दिये कि उनके नक्षत्र भी वे ही हैं जो जन्म के हैं। कल्याणकों के नक्षत्रों का अनायास ही कुछ ऐसा योग बनगया है कि प्रायः प्रत्येक तीर्थंकर के पांचों कल्याणक एक ही नक्षत्र में होगये हैं । जैसे ऋषभदेव के सभी कल्याणक उत्तरापाठ में हुये हैं। अजितनाथ के सभी रोहिणी में हुये हैं इत्यादि । कहीं कुछ मामूली फर्क भी जिसका विवरण लेखा के अन्त में दिये नक्शे से ज्ञात कर सकते हैं। इतीमा वृषभादीनां पुष्यत्कल्याणमालिकाम् करोति कंठे भूषां यः सः स्यावासायरेडितः ॥ ३५ ॥ १२३ तिथियों के अनुक्रम से किया है जिससे लिपिकारों के द्वारा भी कोई गल्ती होने की संभावना नहीं रहती है और न किसी शब्द के विभिन्न अर्थ करने की गुंजाया ही । इससे निश्चय ही यह पं० प्राशावर की कृति है। इसमें भाषाधर ने पंचकल्याणकों की जो मास पक्ष तिथियाँ दी हैं में सब उत्तरपुराण के अनुसार ही हैं और खूबी यह की है फि बन मास-पक्ष हो कहीं २ कल्याणमाला और मुद्रित उत्तर पुराण की तिथियों में भी कुछ भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। उस पर भी यहां विचार कर लेना । समुचित है। दोनों को तिथिभिन्नता निम्न प्रकार है चंद्रप्रभ का गोक्ष धर्मनाथ का गर्भ मल्लिनाथ का ज्ञान जब हम आचार्य गुणभद्रकृत उत्तर पुराण में लिखे तिथि नक्षत्रों में मेल की जांच करते हैं तो उन्हें हम एक दम सही पाते हैं। यहां तिथियों के साथ जो नक्षत्र दिये गये हैं वे व्योतिष सिद्धांत की गणना के अनुसार बरावर बैठते चले जाते हैं। पार्श्वनाथ कहीं कुछ भी अन्तर नहीं पड़ता है। ये मास पक्षतिथियाँ इतनी प्रामाणिक है कि पं० प्राशाघर जी ने इन्हीं को अपनाई है। प्रशाधरजी ने एक कल्याणमाला नामक पुस्तिका निर्माण की है जो सिर्फ २५ श्लोक प्रमाण है। वह माणिक चन्द्र ग्रन्थमाला "सिद्धांतसारादिसंग्रह" के साथ छपी है । उसका धन्तिम पद्य यह है का ज्ञान अरनाथ का गर्भ मुद्रित उत्तर पुराण में फागुण सुद ७ ज्येष्टा वैशाख सुद १३ रेवती फागुण बुद ३ रेवती मगसर सुद ११ तबुद १४ विशाला कल्पारणमाला में फागुण बुद ७ वैशाख बुद १३ फागुण सुद ३ पोस बुद २ तबुद ४ इसमें से जो तिथियें कल्याण माला की हैं वे सही हैं। क्योंकि जो नक्षत्र ऊपर उत्तरपुराण में दिये हैं उनकी संगति कल्याणमाला की तिथियों के साथ बैठती है, मुद्रित उसर पुराण की उक्त तिथियों के साथ नहीं । अतः उतरपुराण की उक्त तिथियों के प्रतिपादक श्लोक लिपिकारों के प्रमाद से शुद्ध लिखने में घागये हैं। ऐसा ज्ञात होता है। इसमें से शुक्लपक्ष का अंतर तो हो जाना घासान ही है और जो मल्लिनाथ के ज्ञानकल्याण की तिथि । में अंतर है वहां भी पोस बुद २ की मिति ही सही है क्योंकि उत्तरपुराण में मल्लिनाथ का संयम अवस्था का दीक्षा दिन मगसर सुद ११ का लिखा

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