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भट्टारक युगीनं जैन संस्कृत-साहित्य की प्रवृत्तियाँ
११७ पूजन, मेघमालोद्यापन पूजन, ( १५वीं शती ); प्रह- इन नाटकों में नवीन शैली या नवीन भावों का श्रुतसागर का अतस्कन्ध पूजन (१६वीं शती) समावेश नहीं हो सका है। गुणचन्द्र का अनन्तजिनयत पूजन ( १७वीं शती) ।
१. चरित्र या प्राचारमूलक धार्मिक साहित्यशिवराज का षट्चतुर्विंशतिजिनार्चन (१७वीं शती)
प्रवृत्तिचन्द्रकीति के पंचमेरु पूजन, अनन्तवत पूजन और । नन्दीश्वर विधान (१७वीं शती) विद्याभूषण के
इस प्रवृत्ति के साहित्य-निर्माताओं में भट्टारक ऋषि मण्डल पूजन, बृहत् कलिंकुण्ड पूजन और
सकलकीति, शुभचन्द्र, सकलभूषण, ज्ञानभूषण,
धर्मकीति, मेधावी, सोमकीति, रायमल्ल नेमिदत्त, सिद्धचक्र मन्त्रोद्धार स्तवन पूजन (१७वीं शती) बुधवीरु के धर्मचक्र पूजन और बृहत् चक्र पूजन
जिनदास और ज्ञानकोक्ति प्रादि प्रमुख हैं। इस
प्रवृत्ति में श्रावकाचार या चारित्रोत्थानक तत्त्वज्ञान (१६वीं शती) विश्वसेन का षण्णवति क्षेत्रपाल पजन (१६वीं शती) सकल कीति के पंचपरमेष्ठि
सम्बन्धी रचनाएँ पाती हैं। 'रलकरण्ड श्रावका
चार' के अनुकरण पर अधिकांश रचनाएँ निमित पूजन, अष्टान्हिका पूजन, पोठशकारण पूजन, और
हुई हैं। पण्डित प्राशाधर जैसे स्वतन्त्र-चिन्तक गणधरवलय पूजन ( १६वीं शती ) एवं अक्षयराम
मनीषी भी इस प्रवृत्ति के अनुसरणकर्ता हैं । इनके का चतुर्दशीव्रतोद्यापन पूजन (१९वीं शती)
सागारधर्मामृत और प्रनगारधर्मामृत इस युग की उल्लेख्य हैं। स्तोत्रों में पद्मनन्दि के बीतराग स्तोत्र,
प्रतिनिधि रचनाएं हैं। अन्य रचनाओं में सकलशान्तिजिन स्तोत्र, रावण पार्श्वनाथ स्तोत्र और
कीति के धर्म-प्रश्नोत्तर श्रावकाचार और मूलाचार जीरावली पार्श्वनाथ स्तवन ( १५वीं शती ) ब्रह्म
प्रदीप ( १५वीं सदी ) ब्रह्मनेमिदत्त का धर्मोपदेश शु तसागर के पार्श्वनाथ स्तवन पौर शान्तिनाथ
पीयूषवर्षी श्रावकाचार (१६वीं सदी ) पद्मनन्दी स्तवन (१६वीं शती ) जिनप्रभमूरि के सिद्धान्तागम
का श्रावकाचार सारोद्वार (१४वों सदो) अम्रदेव स्तव, पार्श्व स्तव, गौतम स्तव, वीर स्तव, चतु
का व्रतोद्योतन श्रावकाचार (अनुमानतः १४-१५वी विशतिजिन स्तव, निर्वाणकल्याण स्तव, ऋषभजिन
शती) नरेन्द्रसेन का सिद्धान्तसार (अनुमानतः स्तवन, अजितजिन स्तवन, नेमि स्तवन, श्री मन्त्र
१३-१४वी शती) गोबिन्द का पुरुषार्थानुशासन स्तवन, श्री शारदा स्तवन और शान्तिजिन स्तवन
(१५वीं शती) शुभचन्द्र का प्रध्यात्म तरङ्गिणी (१४वीं शती ) एवं सकलकीत्ति का परमात्मराज
ग्रन्थ (१६वों रातो) ज्ञानभूषण के सिद्धान्तसार, स्तोत्र ( १५ वीं शती) प्रमुख हैं । व्रतोद्यापन एवं
परमार्थोपदेश और प्रात्मसम्बोधन ( १३वीं सदी) व्रत विधान सम्बन्धी रचनाएं भी इस युग में
एवं सोम मेन का त्रिवर्णाचार उल्लेख्य हैं। निर्मित हुई है।
१०. समत्यापूात्मक साहित्य८. नाटक
__भट्टारक-युग में श्वेताम्बर कवियों ने समस्याजैन संस्कृत-साहित्य में रूपकों का विकास पत्ति को लेकर कई सुन्दर काम्य ग्रन्थों का प्रणयन नवमीं शती से हमा है। माटकों के विकास का किया है। कवि मेघविजयगगि ने नैषध महादृष्टि से सन् ६००-१३०० ई. तक स्वर्णकाल काव्य के प्रथम सर्ग के सम्पूर्ण श्लोकों की समस्यामाना जा सकता हैं । भट्टारक-युग में लिखे गये पूति कर शान्तिनाथ चरित की रचना की है । नाटकों में बादिचन्द्र का ज्ञानसूर्योदय (विक्रम इस काम्य के प्रथम चरण में नैषध के प्रथम चरण संवत् १९४८, माघ शुक्ला अष्टमी ) और यशचन्द्र को, द्वितीय चरण को, तृतीय को तृतीय चरण में का मुद्रित कुमुदचन्द्र प्रसिद्ध हैं। यह सत्य है कि और चतुर्थ में चतुर्थ चरण को नियोजित कर