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बाबू छोटेलाल जी और उनका व्यक्तित्त्व
भी 'स्वतन्त्र' सूरत
छोटा हो या बड़ा यदि वह गुदड़ी में
लाल छोटा हो या बड़ा यदि वह गुदड़ी में
छिपा है तब भी वह चमकता है । श्री बाबू छोटेलाल जी कलकत्ता इसी तरह के लाल थे। उनका व्यक्तित्व समाज पर छाया रहता था। बाबूजी में अनेक विशेषतायें थी; वे किसी से मिलें या कोई उनमे मिले वह छोटा हो या बड़ा, रंक हो या राव, पर आप अपना प्रेम, वात्सल्य सौहार्द मिलने वाले पर उड़ेल देते थे। तब मिलने वाले को लगता था कि मानों बाबूजी हमारे ही परिवार के एक अनन्य सदस्य हैं ।
बापूजी पंचवाद की चाहार दीवारों, संकोच वृति, सम्प्रदायवाद कौमवाद, पदलिप्सा, इनसे बहुत ऊंचे उठे हुए थे। इतना ही नहीं, इन विषमताओं को गहरी खाई को पाटने का भरसक प्रयत्न समय-समय पर किया भी था । यह सत्य है कि श्राप नाम से पत्रकार नहीं थे पर मेरी दृष्टि में आप पत्रकारों के भी पत्रकार थे । अनेकान्त पत्र के तो आप संचालक, व्यवस्थापक एवं सम्पादक आदि सभी कुछ थे। हमारे समाज में अनेक पत्रकार हैं। जिनमें कुछ पत्रकार निकम्मे, भोडे, स्वार्थी एवं प्रपात्र हैं और पत्रकारिता के नाते अपना उल्लू सीधा करते हैं। कुछ पत्रकार ऐसे हैं जो केवल अपनी मान प्रतिष्ठा हो चाहते हैं, जानने कुछ नहीं पर उनका नारा है कि हम ही सब कुछ हैं हम जैसा कोई सेवक हो ही नहीं सकता। उनका दुरभिमान बालू के पहाड़ पर खड़ा होकर ठहाका मारता है और सेवा के नाम पर खा कमा जाना उनका साधारण सा काम है। लेखक का मत है कि ऐसे पत्रकार हमारे बाबूजी में मार्गदर्शन लेकर अपने आप में पर्याप्त सुधार कर सकते हैं और पत्र
कारिता में जो जगने वाले कलंक हैं उनसे वे सहज ही बच सकते हैं ।
बाबूजी सन् १९४७ में सूरत प्राये थे। आपके साथ प्रापकी भतीजी भी थी। भाप मेरे लेखों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से तो जानते ही थे, सूरत घाते ही आपने मुझे याद किया और में प्रापसे उसी समय मिलने गया । दुबला पतला इकहरा गोरांग दारीर, चदमे द्वारा गहराई से भांकते हुये, हृदय में एक टीस दबाये, प्रसन्न मुद्रा, इस रूप में सर्वप्रथम मैने बाबूजी के दर्शन किये थे ।
यह सच है कि बाबूजी ने मुझे कभी नहीं देखा या और न मैंने बाबूजी को देखा था मेरे माते ही बापूजी ने कहा- माइये स्वतन्त्र जी भाजकल तो श्राप बहुत अच्छा लिख रहे हैं। मानव जीवन को गति में मोड देने के लिये धापके लेख बड़े उपयोगी हैं। मैने विनम्रतापूर्वक कहा- बाबूजी यह सब ग्राप जैसे महानुभावो के पवित्र आशीर्वाद और सद्भावनाओं का परिणाम है में किचन इस योग्य कहाँ ? जैसा कि आप मुझे मान रहे हैं।
यह वाक्य में पूरा नहीं कर पाया था कि आपने मेरा हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया। पारिवारिक परिचय के बाद आपमे सामाजिक एवं धार्मिक पर्यायें होती रही चर्चाधों के दौरान मुझे लगा कि बाबूजी की विद्वता किसी बहु तज्ञ अनुभवी कर्मठ विद्वान से कम नहीं है। सामाजिक प्रान्दोलनों का भी प्रापको गहरा अनुभव था । इतना ही नही, किसी प्रान्दोलन के श्राप सूत्रधार श्रौर किसी आन्दोलन के श्राप संचालक भी रहे थे ।
आपने मुझसे एक बड़ी मार्मिक बात कही जो मेरी दृष्टि में एक सूत्र की तरह है । श्रापके शब्द निम्न प्रकार है