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चमन में इनसे इबरत है बल्कि उसके लिए उच्चशिक्षा का प्रबन्ध कर उसे पीड़ित थे, खाँसी बहुत परेशान कर रही थी; पर उच्च पद पर प्रतिष्ठित किया है । चन्दना, प्राश्चर्य की बात यह थी कि उत्सव प्रारम्भ होते खेलना और सीता जैसी सती नारियाँ ज्ञान के क्षेत्र ही प्रापका दमा न मालूम कहाँ चला गया । प्राप में प्राशातीत उन्नति कर रही हैं। मेरा तो यह इतुमत सभामों में तीन-चार घण्टे लगातार बैठे रहते है कि नारियां ही देश के कलेवर का परिष्कार कर थे, पर एक बार भी खाँसी नहीं भाती थी। ऐसा सकती हैं। वह समाज, जो अपनी नारियों को प्रति- मालूम पड़ता था मानो मापने किसी योग क्रिया के ष्ठित करने की बात नहीं सोच सकता, कभी भी बल से दमा को जीत लिया हो । मापकी लगन, विकास की पोर नहीं बढ़ सकता । मैं बाईजी के तत्परता और प्रत्येक कार्य को सून्दर ढंग से सम्पादन कार्यों को पुनः पुनः प्रशंसा करता हूँ।"
करने की क्षमता दर्शनीय थी। जिस स्थान पर सभा में मापने पुरातत्त्व और इतिहास की विद्वान ठहरे हए थे, उस स्थान पर पाप कई बार महत्ता पर भी प्रकाश डाला। कलापूर्ण मूत्तियों पधारे और उन से मिलकर एवं चर्चा कर बड़े और मन्दिरों के चित्र भी दिखलाये । आपका प्रसन्न हए। मत है कि अतीत के गौरव की गन्ध ही समाज को उत्सव समाप्त होने के अनन्तर प्राप जैन उत्तेजिन की है और इसी गन्ध को मस्ती उसे सिद्वान्त भवन की उन्नति के हेतु कई दिनों तक चर्चा नया जीवन दान देती है। प्राचीन खंडहरों में हमारा करते रहे। समाज और साहित्य के कार्यों में आप प्रतीत छिपा है. हम उसे ढह कर अपने भविष्य विशेष रुचि लेते थे तथा छोटे-बड़े सभी प्रकार के को स्वर्णमय बनाना है। अभी तक जैन साहित्य लेखकों को उत्साहित करते थे । आपकी प्रेरणा से का इतिहास नही लिखा गया है। दिगम्बर जैन कलकत्ता में कितनं ही विद्वान जैन साहित्य के साहित्य भण्डारी में उद्धारको की प्रतीक्षा कर रहा अध्येता बन गये हैं। वीर-शासन-जयन्ती महोत्सव हे । सहस्त्रां प्रन्थ नष्ट हो चुके है, अतएव हमें इस को सम्पन्न करने में आपने जो अथक परिश्रम किया और भी ध्यान देना है वस्तुतः साहित्य जीवन की था, उसे समाज सदैव याद रखेगा। इतने बड़े सतत गतिशील प्रेरणामों में से एक है। समाज उत्सव की सफलता का श्रेय वावजी को ही था । का अस्तित्त्व साहित्य पर ही प्रवलम्बित है। आपकी बहुमुखी प्रतिभा, दूसरों के सुख के लिए
प्रथम साक्षात्कार के पश्चात् तो बाबूजी के सर्वस्व वितरण करने की भावना, राष्ट्र और देश निकट सम्पर्क में पाने का अनेक बार अवसर मिला। सेवा का संकल्प एवं परोपकार करने की सत-बद्धि वे अत्यन्त कर्मठ, परोपकारी, सेवाभावी एवं समाज ऐसे गुण थे, जिनके कारण आपकी गणना विश्व और साहित्य के लिए सतत चिन्तित रहते थे। जब के महान व्यक्तियों में की जा सकती है। बाबु कोई भी विद्वान उनके पास पहुंचता, तो वे घण्टों छोटेलालजी जैसे लाल किमी भी समाज को दो बैठकर उसके साथ समाज और साहित्योत्थान की पूण्योदय से ही प्राप्त होने हैं। प्र.पको सस-प्रेरणा चर्चा करते रहते । विद्वान् के पहुंचने से उन्हें अपूर्व से अनेक नेतर विद्वान् और श्रीमान् जैन साहित्य प्रसन्नता होती । शास्त्रीय और ऐतिहासिक चर्चा के मणि-माणिक्यों से परिचित हो गये हैं। में उन्हें इतना रस पाता कि चर्चा के समय में कलकत्ता में गया बाहर का कोई भी जन आपके उनका चिर सहचर दमा भी न मालूम कहाँ चला पास पहुँच कर सुखसुविधाएँ तो प्राप्त करता ही, जाता । श्री अनसिद्धान्त भवन मारा के हीरक उसे रोजी-रोटी दिलाने में भी भाप पूर्ण सहायता जयन्ती महोत्सव के बाबूगी स्वागताध्यक्ष होकर करते। प्रापका जीवन वास्तव में प्रादर्श, अनुकरणीय पधारे। जब पाप मारा में पाये तो दमा से एवं अभिनंदनीय था।