Book Title: Asrava Tribhangi
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Gangwal Dharmik Trust Raipur

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Page 6
________________ णयणिक्खेवपमाणं जाणित्ता विजिदसयलपरसमओ। वरणिवइणिवहवंदियपयपम्मी चारुकित्तिमुणी।। णादणिखिलत्थसत्थो सयलणरिंदेहिं पूजिओ विमलो। जिणमग्गगमणसूरी जयउ चिरं चारुकित्तिमुणी ।। वरसात्तयणिउणो सुदं परओ विरहियपरभाओ। भवियाणं पडिबोहणयरो पहाचंदणाममुणी ॥ इन गाथाओं से स्पष्ट है कि देशीयगण पुस्तकगच्छ इंगलेश्वरबली के आचार्य अभयचन्द्र के शिष्य बालचन्द्रमुनि हुए। इन्होंने अनेक वादियों को पराजित किया था। गाथाओं में आये हुए आचार्यों पर विचार करने से इनके समय का निर्णय किया जा सकता है। श्रवणवेलगोला के अभिलेखों के अनुसार श्रुतमुनि अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य थे। इनके शिष्य प्रभाचन्द्र हुए और उनके प्रिय शिष्य श्रुतकीर्तिदेव हुए। इन श्रुतकीर्तिका स्वर्गवास शक संवत् 1306 (ई. सन् 1384) में हुआ।इनकेशिष्य आदिदेव मुनि हुए। पुस्तकगच्छ केश्रावकों ने एक चैत्यालय का जीर्णोद्धार कराकर उसमें उक्त श्रुतकीर्ति की तथा सुमतिनाथ तीर्थंकर की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की थीं। बालचन्द्रमुनि ने श्रुतमुनि को श्रावकधर्मकी दीक्षा दी थी। आस्रव त्रिभङ्गी और परमागमसार में श्रुतमुनिनेइनका स्मरण किया है। श्रुतमुनि की तीन रचनाएँप्राप्त होती हैं: 1. परमागमसार 2. आस्रव त्रिभङ्गी 3. भाव त्रिभङ्गी [ m] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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